Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.1 ||

‌ देशबन्धश्चित्तस्य धारणा 


पदच्छेद: देश, बन्ध:, चितस्य‌, धारणा ‌॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • चित्तस्य -चित्त को
  • देश -शरीर स्थित किसी स्थान (नाभि, हृदय या माथे) पर
  • बन्ध:-बाँधना अर्थात ठहराना या केन्द्रित करना
  • धारणा-धारणा होती है ।

English

  • desha - point, object
  • bandha - holding, fixation
  • chittasya - mind, consciousness
  • dharana - concentration.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: अपने चित्त को किसी भी एक स्थान पर (नाभि, हृदय या माथे पर) बाँधना, लगाना, ठहराना, या केन्द्रित करना धारणा कहलाती है ।

Sanskrit: 

English: Dharana is holding the mind to one place, object or point.

French: 

German: Wenn sich das Citta ( das meinende Selbst) mit einem Motiv verbindet, entsteht Dhāranā, die anhaltende Ausrichtung.

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Yog Sutra 3.1

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

योग मार्ग पर चलते हुए साधक जब विविध यौगिक साधनों का अभ्यास करता हुआ एक स्थिति को प्राप्त कर लेता है फलस्वरूप सिद्धियाँ उसे प्राप्त होने लगती हैं | ये सिद्धियाँ किस प्रकार योगी को मिलती हैं और क्या क्या इन सिद्धियों के द्वारा कार्य  सम्पादित होता है यह विभूति पाद में महर्षि ने बतलाया है |

 

योग दर्शन के प्रत्येक सूत्र में एक लयबद्धता छुपी हुई है, एक प्रवाह छुपा हुआ है | जैसा कि हम पूर्व के पादों (समाधि पाद और साधन पाद ) में यह समझते आयें हैं कि चित्त क्या है ? इसका स्वरुप क्या है? अब महर्षि चित्त की धारणा विशेष के बारे में समझा रहे हैं |

योग के साधनों का अभ्यास करते हुए जब चित एकाग्र हो जाता है तो फिर उसे शरीरस्थ या शरीर के बाहर किसी अंग, स्थान विशेष पर एकाग्र करने का प्रावधान महर्षि बता रहे हैं और इसी एकाग्र करने की प्रक्रिया को यहाँ  “धारणा” के नाम से परिभाषित किया जा रहा है | शांत प्रशांत मन से जब साधक अपने चित की एकाग्रता को नाभि स्नाथान, सिकाग्र, भृकुटी अथवा ह्रदय प्रदेश अथवा जिह्वा के अग्रभाग  में से किसी एक पर ले जाता है तो इस प्रकिया को धारणा के नाम से महर्षि कह रहे हैं | यह एक पारिभाषिक सूत्र है अर्थात ऐसा सूत्र जो किसी एक निश्चित प्रकिया को एक एक नाम दे रहा है | धारणा करने से क्या होगा यह आगे के सूत्रों में महर्षि स्वयमेव ही बताएँगे | धारणा योग के अन्तरंग साधनों में से एक अंग है, योग के अन्तरंग साधन और कौन कौन से हैं उनके विषय में महर्षि आगे बताएँगे |

 

योग दर्शन में कुछ सूत्र परिभाषात्मक हैं, कुछ सूत्र परिक्रियात्मक हैं, कुछ परिमाणात्मक हैं लेकिन इसके साथ ही सभी सूत्रों में विधि निषेध परक निर्देश छुपे हुए हैं |

धारणा कैसे करें : साधक को चाहिए कि अपनी सुविधा अनुसार बाह्य अथवा आंतरिक किसी अंग विशेष पर अपनी एकाग्रता को ले जाकर उस बिंदु, अंग अथवा स्थान पर ठहराने का सहज प्रयत्न करें | उस क्षण सब प्रकार से अपने आप को प्रवृति निर्वृति (किसी भी कार्यं में लगने और हटने के भाव से ) से ऊपर उठा ले और सहज प्रयत्न में एकाग्रता पूर्वक उस धारणा के स्थान पर बने रहें | यह स्थान या तो शरीर के भीतर माथा, ह्रदय, नासिकाग्र या शरीरस्थ कोई भी चक्र हो सकता है | शरीर के बाहर किसी चित्र ( वृक्ष, पर्वत, पुष्प जो भी चित्र आपको अभीष्ट हो ) पर भी आप धारणा कर सकते हैं | प्रारंभ में साधक के पास अपनी सुविधा के अनुसार भीतर या बहार किसी स्थान को चुनने की स्वतंत्रता तो है लेकिन अभ्यास हो जाने के बाद धीरे धीरे साधक बाह्य अलाम्बनों को त्यागता हुआ अंतर्मुखी होने लगता है और फिर अपने भीतर ही धारणा का अभ्यास करता हुआ अपनी साधना को आगे बढाता है | इसलिए जो प्रयत्न पूर्वक पहले से ही अपने शरीरस्थ अंगों में धारणा का अभ्यास कर सके वे अवश्य करें |

निरंतर यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार का अभ्यास करता हुआ धारणा के अभ्यास के लिए प्रवृत्त होता है जिससे योग के पूर्व 5 अंगों के अभ्यास से पुष्ट हुआ मन आसानी से किसी स्थान विशेष पर एकाग्र होने लगता है | इसलिए योगाभ्यास में क्रम का भी अपना महत्व है, क्रम से आठो अंगों का किया हुआ अभ्यास शीघ्रता से फल देता है |

जैसे जैसे हमारी धारणा में गति होने लग जाती हैं, मन और शांत और प्रशांत होने लगता है | धारणा की यह साधना हमें अंतर्मुखी बनाने लग जाती है और हमारी इन्द्रियों पर हमारी वशता और प्रगाढ़ होने लग जाती है |

coming soon..
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सूत्र: देशबन्धश्चित्तस्य धारणा

 

मन में विचार, विचारों में उलझन

जीवन का यह ढंग पुरातन

एक जगह जब मन टिक जाए

स्थिति योग में वह “धारणा” कहलाये

3 thoughts on “3.1”

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    प्राण वायु मे अपान वायु का ओर अपान वायु मे प्राण वायु का हवन केसे करते है ?

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