संस्कारसाक्षात्करणात्पूर्वजातिज्ञानम् ॥ ३.१८॥
प्रस्तुत सूत्र में महर्षि कह रहे हैं कि जब योगी अपने संस्कारों के ऊपर धारणा-ध्यान और समाधि रूप सम्मिलित प्रयास जिसे योग की परिभाषा में संयम कहा गया है, लगाते हैं तो योगी को अपने पूर्व जन्मों का ज्ञान होने लगता है अर्थात वह पूर्व के जन्मों में किस योनि में था यह सबकुछ योगी को ज्ञात हो जाता है |
कैसे योगी अपने संस्कारों करता है? आईये इसे समझते हैं | हम जो कुछ करते हैं और जिस भाव से करते हैं उसकी छाप प्रतिक्षण हमारे चित्त पर अंकित होते रहती है | जिस कर्म को जितनी बार हम जिस तरीके, भाव, ढंग, प्रक्रिया से करते हैं वह सबकुछ पैटर्न के रूप में हमारे अंतःकरण, चित्त, मन, सबकुछ में एक स्मृति या मेमोरी के रूप में संचित हो जाता है और यह सबकुछ मृत्यु के बाद भी हमारे अंतःकरण के साथ साथ यात्रा करता है | यही प्रक्रिया वर्तमान जन्म में आदतों का निर्माण करती है, फिर आदतें बार बार व्यवहार में आने से प्रवृत्ति का से रूप ले लेती हैं | इस प्रकार यह श्रृंखला धीरे धीरे बार बार अभ्यास में आने से संस्कारों में बदल जाती हैं और फिर संस्कारों का वेग उठता है जो बलात कार्य में परिणित हो जाता है |
योगी जब अपने जीवन को ठीक प्रकार से देखता है तो वह देख पाता है कौन से ऐसे संस्कार हैं जो अनायास ही उसे खींच ले जाते हैं | ये संस्कार अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी | इस प्रकार किसी भी के संस्कार पर जब योगी संयम (धारणा -ध्यान-समाधि ) साधता है तो उसे अपने सभी पूर्व जन्मों के बारे के बारे में सब प्रकार की जानकारी हो जाती है | इसी प्रक्रिया के अनुसार यदि योगी किसी अन्य व्यक्ति के संस्कारों पर भी संयम करता है तो उस व्यक्ति के भी पूर्व जन्मों का भी ज्ञान योगी को हो जाता है |
सामान्यतः बच्चों का अंतःकरण अत्यंत निर्मल और स्वच्छ होता है, ऐसा माना जाता है कि उन्हें अपने पूर्व जन्मों की स्मृति रहती है इसलिए एकांत में कभी कभी बच्चे अनायास ही हँसते हैं तो कभी मायूस होकर रोने लग जाते हैं | चूँकि एक लम्बा जीवन उनकी प्रतीक्षा है इसलिए प्रकृति की व्यवस्था अनुसार उनको विस्मरण होता चला जाता है एवं उनके वर्तमान जन्म के संस्कार भी विस्मरण में कारण बनने लग जाते हैं |
सूत्र: संस्कारसाक्षात्करणात्पूर्वजातिज्ञानम्
जब योगी संस्कारों पर संयम करता
ध्यान, धारणा और समाधि का भाव है भरता
हर एक संस्कार जो कर्मों से बना है
उसमें जन्म जन्मांतरों का प्रवाह सना है
इसलिए पूर्व जन्मों का ज्ञान वो पाता
पूर्व जन्मों का योगी को भान हो जाता