पूर्वोक्त सूत्र में धर्म शब्द आया है जिसका अर्थ महर्षि इस सूत्र के माध्यम से समझा रहे हैं | धर्म को हमने गुण इस अर्थ था अब शास्त्रीय परिभाषा करते हुए महर्षि कह रहे हैं कि किसी भी पदार्थ या तत्त्व के जो काल या अवस्थानुसार परिवर्तन होते हैं उन परिवर्तनों के बाद भी जो सभी काल (भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल) में अनुगत रहता है अर्थात एक जैसा बना रहता है या सदैव विद्यमान रहता है, भले ही धर्म, लक्षण और अवस्था अनुसार बड़े परिवर्तन हो जाएँ, उसे शास्त्र के अनुसार धर्मी, इस इस नाम से परिभाषित किया गया है | यह मूलतः एक पारिभाषिक सूत्र है |
यहाँ शांत शब्द से भूतकाल को, उदिता से वर्तमान काल को और अव्यपदेश्य से भविष्य काल को कहा गया है |
सूत्र: शान्तोदिताव्यपदेश्यधर्मानुपाती धर्मी
भूत, भविष्य और वर्तमान काल में
रहता है अनुगत जो हर हाल में
उसे वस्तु- पदार्थ का धर्मी कहा है
जो वस्तु में वर्तमान हर हाल रहा है
परिभाषिक सूत्र हम इसे कह सकते
धर्म और धर्मी अलग नहीं रह सकते