पूर्व में जैसे चित्त के पांच प्रकार बताये गए हैं |
१. क्षिप्त
२. मूढ़
३. विक्षिप्त
४.एकाग्र
५. निरुद्ध
हमारा चित्त इन पांच प्रकार की भूमियों में त्रिगुणों के प्रभाव से विचरता रहता है, योगाभ्यास से हमें अपने चित्त को यत्नपूर्वक पहले एकाग्र और फिर धीरे धीरे लम्बे अभ्यास से निरुद्ध अवस्था में ले जाने का प्रयत्न करते रहना है | जब चित्त एकाग्र या निरुद्ध नहीं रहता है तब सत्त्व, रजस और तमस के मिश्रण से कभी क्षिप्त, कभी विक्षिप्त या फिर मूढ़ स्थिति में होने से चंचलता होता है जिससे साधक ठीक से योग मार्ग पर आगे नहीं बढ़ पाता है | इसलिए यत्नपूर्वक चित्त की स्थिति एकाग्र बनाये रखने के लिए प्रयास साधक को करते रहना चाहिए, क्योंकि तभी योग सिद्ध हो सकता है |
चित्त का त्रिगुणों प्रभाव से चंचल हो जाना और एकाग्र या निरुद्ध स्थिति में योग के अनुकूल हो जाना ये दोनों चित्त के परिणाम है अर्थात ऐसा चित्त का परिणाम संभव है | चित्त के विषय में साधक ठीक प्रकार से उसकी प्रक्रिया को समझ ले और फिर उसके कार्य करने और उसके संभावित परिणाम को समझकर योगमार्ग पर आगे बढ़ सके इसके लिए यह सूत्र यहाँ पढ़ा गया है |
यह निश्चित समझ लें कि बिना चित्त के एकाग्र या निरुद्ध हुए योग सिद्ध नहीं हो सकता है | चित्त को योग के लिए तैयार करना अर्थात उसे क्षिप्त, मूढ़ और विक्षिप्त अवस्था से बाहर लाकर एकाग्र में स्थित करके ही योग सिद्ध किया जा सकता है |
किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए कुछ मूलभूत सिद्धांतों, प्रक्रियाओं को ठीक से समझना बहुत आवश्यक होता है तभी उसके बाद सशक्त आधार पर कार्य की सफलता का भवन-निर्माण होता है | इसी प्रकार योग की सिद्धि हेतु चित्त को एकाग्र करना और फिर उस एकाग्रता के साथ योग मार्ग पर धीरे धीरे अनुभव करते हुए आगे बढ़ना होता है क्योंकि योग ही योग पथ पर आगे बढ़ाता है | योग एव योगस्य उपाध्याय: ऐसा कहा गया है |
इस सूत्र के बाद आगे के सूत्रों में एकाग्रता का परिणाम और फिर धर्म, लक्षण और अवस्था के परिणाम पर भी महर्षि पतंजलि प्रकाश डालेंगे | क्योंकि चित्त के चंचल होने और एकाग्र होने की बात बताकर महर्षि ने चित्त को एकाग्र कर योग करने की बात पर जोर दिया है तो जब चित्त एकाग्र हो जायेगा तब किस प्रकार के परिणाम चित्त के सामने आते हैं उसपर महर्षि बात करेंगे |
सूत्र: सर्वार्थतैकाग्रतयोः क्षयोदयौ चित्तस्य समाधिपरिणामः
बेलगाम मन इधर उधर है भागता
कसो लगाम तो भीख है मांगता
कभी एक डाल तो कभी दूजी डाल
यही है मन की बेलगाम चाल
कभी अच्छे संस्कारों के परवश होकर
हो जाता एकाग्र सब चंचलता खोकर
समाधि भाव से युक्त हुआ मन
किसी एक विषय का जाता है बन
फिर अनेक विषयों नहीं भटकता
समाधि भाव से एक में अटकता
यही चित्त का समाधि परिणाम है
मन की निर्मलता का एक आयाम है
साधनपाद तक अंग्रेजी के बाद अंत में हिंदी में जिस प्रकार सूत्रों की विशद व्याख्या की गई है, उसी प्रकार विभूतिपाद में भी सूत्रों की व्याख्या करने की कृपा करें।
Hindi explanation to hai hi nhi