Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.36 ||

ततः प्रातिभश्रावणवेदनादर्शास्वादवार्ता जायन्ते 


पदच्छेद: ततः, प्रातिभ, श्रावण, वेदन, आदर्श, आस्वाद, वार्ता, जायन्ते ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तत: - उस संयम से
  • प्रातिभ- प्रातिभ ज्ञान द्वारा सूक्ष्म, दूर व छिपी हुई वस्तुओं का ज्ञान
  • श्रावण- दिव्य शब्द का श्रवण
  • वेदन- दिव्य स्पर्श
  • आदर्श- दिव्य दर्शन
  • आस्वाद- दिव्य स्वाद
  • वार्ता- दिव्य गन्ध
  • जायन्ते- उत्पन्न होती हैं

English

  • tatah - thence
  • pratibha - prescience
  • shravanna - super natural power of hearing
  • vedana - super natural power of touch
  • adarsha - super natural power of sight
  • asvada - super natural power of taste
  • varta - super natural power of smell
  • jayante - arise.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उस पुरुष में संयम करने से प्रातिभ, श्रावण, वेदन, आदर्श, आस्वाद व वार्ता जैसी सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं ।

Sanskrit: 

English: Thence from knowledge of parusa arises pratibha(prescience), sravna(super natural power of hearing), vedana(super natural power of touch), adarsha(super natural power of sight), asvada(super natural power of taste) and varta(super natural power of smell).

French: 

German: Daraus entstehen die subtilsten Wahrnehmungen über die Sinne - das Hören, Tasten, Sehen, Schmecken und Riechen.

Audio

Yog Sutra 3.36

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • German
  • Yog Kavya

आगे सूत्र में महर्षि पतंजलि बताते हैं कि जब साधक बुद्धि और पुरुष में पृथक पृथक भेद करके केवल पुरुष के ऊपर धारणा, ध्यान और समाधि का एकत्रित अभ्यास करता है तो पुरुष के ज्ञान के साथ साथ ही 6 अन्य अलग-अलग प्रकार की सिद्धियां जिसको महर्षि पतंजलि ने प्रातिभ सिद्धि, श्रावण सिद्धि, वेदन सिद्धि ,आदर्श सिद्धि, आस्वाद सिद्धि और अंत में वार्ता  सिद्धि का नाम दिया है, वे योगी को प्राप्त हो जाती हैं  | अब  एक-एक करके  इन सिद्धियों के बारे में बारे में जानते हैं –

प्रातिभ सिद्धि वह है जिसके द्वारा योगी दूर रखी या ढकी किसी भी  वस्तु या पदार्थ को को बहुत सुगमता से देख लेता है और इसी प्रकार का जो प्रातिभ ज्ञान है वह विभूतिपाद  के 33वें सूत्र में भी उसका उल्लेख आया है |

दूसरी सिद्धि है श्रावण सिद्धि: श्रावण का अर्थ होता है सुनना |  इस सिद्धि से योगी को दिव्य ध्वनियाँ सहित अनेक दिव्य स्तोत्रों का श्रवण होने लग जाता है | जैसे पवित्र  मंत्र स्तोत्र आदि |

तीसरी सिद्धि है वेदन: वेदन का शाब्दिक अर्थ होता है स्पर्श |  और जब वेदन सिद्ध योगी को मिलती है तो उसे साधना के समय एक दिव्य स्पर्श का अनुभव होता है |  जैसे परमात्मा की स्तुति और प्रार्थना करते समय हम जब भावपूर्वक प्रार्थना के शब्दों को गाते हुए कहते हैं-

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव | त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेव ||  ‘हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। तुम ही मेरे सर्वोपरि देवता हो।’ 

ऐसी भावपूर्वक प्रार्थना के साथ साधक को दिव्य स्पर्श की अनुभूति होने लगती है परम पिता परमेश्वर के दिव्य स्पर्श का सानिध्य मिल रहा हो |

चौथी सिद्धि है आदर्श : आदर्श का अर्थ होता है किसी रूप को पूरी तरह देखना या  सम्पूर्णता के साथ देखना | इसकी सिद्धि से योगी को दिव्य दृष्टि की प्राप्ति हो जाती है | इसी प्रकार की सिद्धि पूर्व के सूत्र  में वर्णित  की गई है |

पाँचवीं सिद्धि है आस्वाद  सिद्धि, योगी को दिव्य रसों की अनुभूति होने लग जाती है, खेचरी मुद्रा लगाने पर जैसे कंठ दिव्य रस झरने लग जाता है उसी प्रकार की  अनुभूति होती है | इसी दिव्य रास के बारे में कबीरदास जी कह रहें हैं-

रस गगन गुफा में अजर झरे.
बिन बाजा झंकार उठे जंह
समझि परे जब ध्यान धरे.
रस गगन गुफा में अजर झरे.

और अंत में वार्ता सिद्धि जिसका अर्थ होता है दिव्य गंध का अनुभव का अनुभव | इस प्रकार स्वार्थ में संयम करने से पुरुष  के ज्ञान के बाद छह अलग-अलग प्रकार की सिद्धियां भी योगी  को प्राप्त हो जाती हैं |

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