आगे सूत्र में महर्षि पतंजलि बताते हैं कि जब साधक बुद्धि और पुरुष में पृथक पृथक भेद करके केवल पुरुष के ऊपर धारणा, ध्यान और समाधि का एकत्रित अभ्यास करता है तो पुरुष के ज्ञान के साथ साथ ही 6 अन्य अलग-अलग प्रकार की सिद्धियां जिसको महर्षि पतंजलि ने प्रातिभ सिद्धि, श्रावण सिद्धि, वेदन सिद्धि ,आदर्श सिद्धि, आस्वाद सिद्धि और अंत में वार्ता सिद्धि का नाम दिया है, वे योगी को प्राप्त हो जाती हैं | अब एक-एक करके इन सिद्धियों के बारे में बारे में जानते हैं –
प्रातिभ सिद्धि वह है जिसके द्वारा योगी दूर रखी या ढकी किसी भी वस्तु या पदार्थ को को बहुत सुगमता से देख लेता है और इसी प्रकार का जो प्रातिभ ज्ञान है वह विभूतिपाद के 33वें सूत्र में भी उसका उल्लेख आया है |
दूसरी सिद्धि है श्रावण सिद्धि: श्रावण का अर्थ होता है सुनना | इस सिद्धि से योगी को दिव्य ध्वनियाँ सहित अनेक दिव्य स्तोत्रों का श्रवण होने लग जाता है | जैसे पवित्र मंत्र स्तोत्र आदि |
तीसरी सिद्धि है वेदन: वेदन का शाब्दिक अर्थ होता है स्पर्श | और जब वेदन सिद्ध योगी को मिलती है तो उसे साधना के समय एक दिव्य स्पर्श का अनुभव होता है | जैसे परमात्मा की स्तुति और प्रार्थना करते समय हम जब भावपूर्वक प्रार्थना के शब्दों को गाते हुए कहते हैं-
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव | त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेव || ‘हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। तुम ही मेरे सर्वोपरि देवता हो।’
ऐसी भावपूर्वक प्रार्थना के साथ साधक को दिव्य स्पर्श की अनुभूति होने लगती है परम पिता परमेश्वर के दिव्य स्पर्श का सानिध्य मिल रहा हो |
चौथी सिद्धि है आदर्श : आदर्श का अर्थ होता है किसी रूप को पूरी तरह देखना या सम्पूर्णता के साथ देखना | इसकी सिद्धि से योगी को दिव्य दृष्टि की प्राप्ति हो जाती है | इसी प्रकार की सिद्धि पूर्व के सूत्र में वर्णित की गई है |
पाँचवीं सिद्धि है आस्वाद सिद्धि, योगी को दिव्य रसों की अनुभूति होने लग जाती है, खेचरी मुद्रा लगाने पर जैसे कंठ दिव्य रस झरने लग जाता है उसी प्रकार की अनुभूति होती है | इसी दिव्य रास के बारे में कबीरदास जी कह रहें हैं-
रस गगन गुफा में अजर झरे.
बिन बाजा झंकार उठे जंह
समझि परे जब ध्यान धरे.
रस गगन गुफा में अजर झरे.
और अंत में वार्ता सिद्धि जिसका अर्थ होता है दिव्य गंध का अनुभव का अनुभव | इस प्रकार स्वार्थ में संयम करने से पुरुष के ज्ञान के बाद छह अलग-अलग प्रकार की सिद्धियां भी योगी को प्राप्त हो जाती हैं |