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जब योगी समय की सूक्ष्म गणना जिसे महर्षि क्षण नाम से कह रहे हैं, उसपर संयम करता है तो योगी को विवेकज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। क्षण क्षण परस्पर जुड़ते चले जाते हैं और जब दो क्षणों के क्रम के विभाग में योगी धारणा,ध्यान और समाधि को एक साथ लगाता है तो वह वह सत्य और असत्य, सही और गलत, कर्त्तव्य और अकर्तव्य, विधि और निषेध इन सबके बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से जान लेता है और मुक्त होने के मार्ग पर आरूढ़ हो जाता है।
जो कुछ इस संसार में घटित हो रहा है तो भगवान के अतिरिक्त यदि उसका कोई प्रत्यक्ष साक्षी है तो वह है समय। अब आइए समझते हैं कि समय क्या है?
क्षण -क्षण का जोड़ है समय और यह सदैव वर्तमान ही होता है। समय के बीत जाने और प्रतीक्षा की अपेक्षा से यह भूत और भविष्य कहलाता है। लेकिन समय सदैव वर्तमान रहा है इसलिए उसके गर्भ में सब ज्ञान, विज्ञान समाहित है। इसलिए महर्षि पतंजलि कह रहे हैं कि समय की सबसे सूक्ष्म इकाइयों के बीच जब संयम करते हैं तो योगी को विवेक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। विवेक ज्ञान का अर्थ ही है जिसने जैसा था वैसा ज्ञान लिया। किसी भी प्रकार की मिलावट विवेक ज्ञान में नहीं होती है। यही विवेकज्ञ फिर मुक्ति के मार्ग पर आगे ले जाता है और योगी मुक्त हो जाता है।
कहावत भी है कि – जिसने कण पकड़ लिया वह धनवान हो जाता है और जिसने क्षण पकड़ लिया वह ज्ञानवान हो जाता है।