Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.19 ||

प्रत्ययस्य परचित्तज्ञानम् 


पदच्छेद: प्रत्ययस्य, पर, चित्त-ज्ञानम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • प्रत्ययस्य-अपने से भिन्न व्यक्ति के चित्त में संयम करने पर
  • पर-दूसरे के
  • चित्त-चित्त के भावों का
  • ज्ञानम् -ज्ञान हो जाता है

English

  • pratyayasy - notions
  • para - other
  • chitta - mind, consciousness
  • jnanam - knowledge.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: योगी जब अपने से भिन्न व्यक्ति के चित्त में संयम करता है तो उसे दुसरे व्यक्ति के चित्त के भावों का ज्ञान हो जाता है।

Sanskrit: 

English: By samyama on notions, knowledge of others minds is developed.

French: 

German: Samyama ( Versenkung) in die Eindrücke, die durch ungefärbte Wahrnehmungen entstehen, führt zu Wissen über das Citta der anderen.


Audio

Yog Sutra 3.19

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • Sanskrit
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  • German
  • Yog Kavya

प्रत्ययस्य परचित्तज्ञानम् ॥ ३.१९॥

अब महर्षि अगली विभूति का वर्णन कर रहे हैं | महर्षि कहते हैं कि जब योगी स्वयं से भिन्न अन्य व्यक्ति के ज्ञान को अपने संयम का विषय बना लेता है अर्थात अन्य व्यक्ति के ज्ञान पर एक साथ धारणा-ध्यान-और समाधि का दृढ -सतत अभ्यास करता है तो योगी उस व्यक्ति के चित्त में चल रहे भावों, संस्कारों को अच्छी प्रकार जान लेता है |

कैसे योगी दूसरे के चित्त को अपने संयम का विषय बनाता है ? यह उतना ही सरल और सहज है जितना अपने चित्त के ऊपर एक साथ धारणा -ध्यान और समाधि को लगाना | कोई ऐसा व्यक्ति जिसे योगी जानता हो उसके चित्त का आलम्बन लेकर अर्थात उसके करने,उसके सोचने, उसके व्यवहार करने के ढंग को अपने संयम का विषय चुन लें और उस पर दृढ और सतत संयम करें तब प्रक्रिया अनुसार धीरे धीरे उस व्यक्ति के चित्त में कब,कैसे ज्ञान उत्पन्न होता है उसका पता योगी को लम्बेअभ्यास के परिणाम स्वरुप पता चलने लग जाता है |

लोक व्यवहार में भी इसका बहुत प्रयोग होता है, जब कोई व्यक्ति किसी के चाल,चलन, ढंग और उसके प्रत्येक स्थिति में प्रतिक्रिया करने की रीति को बहुत गहनता से देखता रहता है तो उस व्यक्ति के विषय में वह काफ़ी कुछ जानने लग जाता है | कई बार किसी स्थिति विशेष में तो वह इतना सटीक अनुमान लगा लेता है | जैसे तुम अभी ये सोच रहे हो न ऐसा कहकर जब अन्य  वह व्यक्ति आश्चर्य करता है तो उससे इस बात की सिद्धि होती है |  यह एक सामान्य प्रक्रिया के अंतर्गत होता है लेकिन जब यौगिक विधि और ऋषि प्रदत्त ज्ञान, प्रक्रिया के आधार पर विधिवत साधना के रूप में इसपर कार्य होता है तब जैसा महर्षि बता रहे हैं कि दूसरे के चित्त का ज्ञान हो जाता है, यह अक्षरश: सत्य है |

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One thought on “3.19”

  1. Bhagat singh says:

    You have written very well, thank you
    but Vibhooti pada and Kaivalya pada is not opening. We want to read this also

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