Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.4 ||

त्रयमेकत्र संयमः 


पदच्छेद: त्रयम् , एकत्र, संयम: ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi
  • त्रयम् -तीनों (धारणा, ध्यान व समाधि) का
  • एकत्र -एक ही विषय में सम्मिलित रूप से लगे रहने की स्थिति
  • संयम: -संयम कहलाती है।
English
  • trayam - the three
  • ekatra - together
  • sanyamah - samyama.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: अष्टांग योग के अंतिम तीन अंगों (धारणा, ध्यान व समाधि) का किसी एक ही विषय में अभ्यास करना संयम कहलाता है ।

Sanskrit: 

English: The three (dharana, dhyan and samadhi) together on the same object is called Samyama.

French: 

German: Diese drei Tiefen der Wahrnehmung bilden Samyama ( die Versenkung).

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Yog Sutra 3.4

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

अष्टांग योग के अंतिम तीन अंगों (धारणा, ध्यान व समाधि) का किसी एक ही विषय में अभ्यास करना संयम कहलाता है ।

इस सूत्र के माध्यम से महर्षि ” धारणा, ध्यान और समाधि ” को संयम के नाम से कह रहे हैं | योगदर्शन के आगे के सूत्रों में जब महर्षि किसी एक ही वास्तु, स्थान या शरीर के आन्तरिक अंगों में धारणा, ध्यान और समाधि लगाने की बात करेंगे तो अलग अलग धारणा-ध्यान और समाधि का प्रयोग न करके केवल इतना ही कहेंगे कि इस स्थान, अंग विशेष पर संयम करने से ये विशेष परिणाम आएंगे |

यहाँ इस सूत्र के माध्यम से धारणा-ध्यान और समाधि को एक सामूहिक नाम “संयम” दे दिया गया है | लेकिन एक बात ध्यान देने योग्य है कि जब धारणा-ध्यान-समाधि एक ही विषय, वस्तु में होंगे और एक ही प्रवाह में होंगे तभी हम इसे “संयम” के नाम से संबोधित करेंगे | अथवा ऐसे समझें कि जब महर्षि संयम लगाने की बात करते हैं तो उसी विषय, स्थान या अंग पर धारणा-ध्यान और समाधि का अभ्यास करना है| सम्यक धारणा-ध्यान और समाधि के बाद ही अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है |

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सूत्र: त्रयमेकत्र संयमः

 

तीन अंगों के एकत्रित भाव को

धारणा-ध्यान-समाधि के सम्मिलित प्रभाव को

महर्षि संयम नाम से कहते हैं

योगीजन अभ्यास जिसका करते हैं।

एक वस्तु-स्थान पर जब संयम होता

एकाग्रता का अजस्र प्रवाह संजोता

योगी क्लेशकर्मों से मुक्त हुआ सा

योग की अंतिम स्थिति को छुआ सा

कैवल्य अभिमुख हो जाता

सुख-दुःख सब खो जाता ।

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