Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.9 ||

व्युत्थाननिरोधसंस्कारयोरभिभवप्रादुर्भावौ निरोधक्षणचित्तान्वयो निरोधपरिणामः 


पदच्छेद: व्युत्थान, निरोध-संस्कारयो:, अभिभव-प्रादुर्भावौ, निरोध-क्षण-चित्त-अन्वय, निरोध-परिणाम: ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • व्युत्थान-चित्त की वह अवस्था जिसमें संस्कार प्रभावी होते हैं ।
  • निरोध -वह अवस्था जिसमें संस्कार दब जाते हैं ।
  • संस्कारयो: -विचार या घटनाओं की स्मृति या याददाश्त
  • अभिभव -छिपना या दबना
  • प्रादुर्भावौ-उभरना या प्रकट होना
  • निरोध-संस्कारो के दबने की स्थिति
  • क्षण-समय या काल
  • चित्त -चित्त
  • अन्वय: -मिश्रित या संयुक्त होना
  • निरोधपरिणाम: -निरोध का परिणाम या फल है ।

English

  • vyutthana - emergence
  • nirodha - cessation,
  • sanskarayo - latent impressions
  • abhibhava - suppression
  • pradur - outside
  • bhavau - becoming
  • nirodha - cessation
  • kshanna - moment
  • chitta - consciousness
  • anvayah - linked
  • nirodha - cessation
  • parinamah - the mutation.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: चित्त निरोध की अवस्था समय में चित्त व्युत्थान और निरोध इन दोनों ही संस्कारो से संयुक्त होता है । इसे ही चित्त के निरोध का परिणाम कहा गया है ।

Sanskrit: 

English: By the suppression of the disturbed modifications of the mind, and by the rise of modification of control, the mind is said to attain the controlling modifications - following the controlling powers of the mind.

French: 

German: Wenn das Citta ( das meinende Selbst) bei seiner Fortentwicklung in manchen Situationen sehr gesammelt und in anderen noch sehr sprunghaft ist, nennt sich dieser Zustand des Wandels Nirodha-Parināma ( der Wandel, der durch Sammlung gekennzeichnet ist )

Audio

Yog Sutra 3.9

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

इस सूत्मर के माध्यम से महर्षि चित्त के विषय में सूक्ष्मता से बता रहे हैं कि किस प्रकार साधना के क्षणों में अलग अलग प्रकार के संस्कार के उदय और अस्त होने से चित्त की स्थिति और उसका परिणाम बदलता रहता है | यह सूत्र चित्त को समझने में सहायता करता है | जैसा कि आपको पता है साधनपाद में चित्त को 5 प्रकार की भूमि वाला कहा गया है |

१. क्षिप्त

2. मूढ़

3. विक्षिप्त

4. एकाग्र

5. निरुद्ध

और साथ में यह भी बताया गया है कि योग केवल एकाग्र और निरुद्ध अवस्था में ही संभव हो सकता है अतः इन्हीं दो भूमियों  की प्राप्ति में प्रयत्नशील रहना चाहिए | अतः एकाग्र भूमि प्राप्त होने पर जब साधक योग साधना करता है तो इस जन्म के अभ्यास, संस्कार अथवा पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण चित्त बीच बीच में डोलता रहता है, कभी योग साधना की दृष्टि से अच्छे संस्कार जिन्हें हम निरोध संस्कार कह देते हैं और कभी कभी बुरे संस्कार जिन्हें योग की भाषा में व्युत्थान संस्कार के नाम से कह देते हैं, दोनों प्रकार के संस्कार आते जाते रहते हैं |

ये अच्छे और बुरे संस्कार ( व्युत्थान और निरोध ) भी अपेक्षा से छोड़ने योग्य होते हैं | जो संस्कार में सम्प्रज्ञात समाधि में निरोध होते हैं वही संस्कार असम्प्रज्ञात समाधि में व्युत्थान अर्थात छोड़ने योग्य हो जाते हैं | अतः योग साधना में पहले कुछ संस्कारों को प्राप्त कर सम्प्रज्ञात समाधि लगाई जाती है और फिर उससे ऊँची स्थिति प्राप्त करने के लिए ज्ञान, वैराग्य का सहारा लेकर असम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति होती रहती हैं |

 

अतः चित्त का निरोध और व्युत्थान संस्कारों में बदलते रहना यही  चित्त का परिणाम है |

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: व्युत्थाननिरोधसंस्कारयोरभिभवप्रादुर्भावौ निरोधक्षणचित्तान्वयो निरोधपरिणामः

 

संस्कारों में वृत्ति रूप उफान जब आता है

उभरा रूप संस्कारों का यह व्युत्थान कहलाता है

इसके विपरीत निरोध संस्कार दबे चित्त में रहते हैं

ना कुछ हरकत हैं करते, बस चित पड़े रहते हैं

कभी व्युत्थान कभी निरोध भाव में

चित्त डोलता है इन दो नाव में

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