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जैसे नाभि प्रदेश में संयम करने से योगी को अपने पुरे शरीर (बाह्य एवं आंतरिक) की संरचना का ज्ञान हो जाता है वैसे जब वह शरीरस्थ अपने गले पर जिसे महर्षि कंठकूप कह रहे हैं, उस पर जब धारणा-ध्यान और समाधि का अभ्यास करते हैं तो योगी भूख प्यास नियंत्रण आ जाता है | योगी इस विभूति का प्रयोग अपनी साधना को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं, क्योंकि योग मार्ग पर जो कुछ शक्तियां या विभूतियाँ साधक को मिलती हैं उनका प्रयोग यदि स्वार्थ या सम्मान वश वह लोकप्रियता के लिए करेगा तो धीरे धीरे उसकी साधना में न्यूनता आने लगेगी और जो योगी का परम लक्ष्य कैवल्य होता है वह मिलना असंभव हो जायेगा |
भूख प्यास को नियंत्रित करके साधक लम्बे समय तक अपनी साधना को बिना रोके हुए आगे बढ़ सकता है अतः कोई सदा के लिए भूख प्यास पर नियंत्रण आ जाता है ऐसा यहाँ महर्षि नहीं कह रहे हैं |
गले में संयम कैसे करना चाहिए ? जीवन में साधना के दो पक्ष हैं- एक है एकांत में केवल साधनात्मक रूप से शांत बैठकर अपना अभ्यास करना और दूसरा पक्ष व्यवहार व्यवहार करते हुए साधनात्मक चिंतन एवं मनन करते रहना जिससे कि जब एकांत में बैठें तो साधना और अधिक अच्छे से हो पाए | अतः इन दोनों पक्षों में समय समय पर एकांतिक साधना और व्यवहारिक साधना करते रहने से शीघ्र ही परिणाम मिलने लगते हैं |