बलेषु हस्तिबलादीनि ॥ ३.२४॥
इस प्रस्तुत सूत्र में महर्षि पतंजलि अलग-अलग प्रकार के जो बल हमें दृष्टिगोचर होते हैं उन बलों में संयम करने से अर्थात धारणा ध्यान और समाधि का एक साथ प्रयोग करने से कैसे बल की प्राप्ति होती है उसके विषय में संकेत कर रहे हैं | संसार में सर्वश्रेष्ठ बलों की यदि बात करें तो उसमें हाथी का बल बहुत बलशाली माना जाता है, इसलिए सूत्र में हस्तिबलादिनी यह शब्द पढ़ा गया है | हाथी के बल सदृश अन्य जो भी बल प्रचलित हैं उन सब पर अलग अलग संयम किया जायेगा तो वे सभी बल योगी को प्राप्त हो जाते हैं | संयम का अर्थ पूर्व में भी कई बार हम कर चुके हैं फिर एक बार और अच्छी तरीके से संयम को समझाते हुए बता रहे हैं कि संयम दृढ़ता पूर्वक,सतत रूप से श्रद्धा एवं उत्साह से युक्त होकर धारणा-ध्यान एवं समाधि का अभ्यास और जब अभ्यास इसी ढंग से होता है तो योगी को हाथी के जैसे शारीरिक बल की प्राप्ति हो जाती है | इसी प्रकार यदि मानसिक बल के ऊपर संयम किया जाए तो महान मानसिक बल की प्राप्ति होती है |
आत्मा के बल के ऊपर यदि संयम किया जाए तो आत्मिक बल की प्राप्ति होती है और ब्रह्म का बल सब प्रकार के बालों में सबसे बड़ा बल होता है तो जब हम ब्रह्म बल पर संयम करते हैं तो योगी को ब्रह्म बल की प्राप्ति हो जाती है |
महर्षि पतंजलि के कहने का तात्पर्य है कि संसार में जहां-जहां बल दिखाई देता है, यदि योगी सर्वात्मा होकर संपूर्ण शक्ति,सामर्थ्य,ऊर्जा,उत्साह और श्रद्धा के साथ निरंतर अभ्यास करें तो सब प्रकार के बलों की प्राप्ति योगी को हो जाती है |