बहिरकल्पिता वृत्तिर्महाविदेहा ततः प्रकाशावरणक्षयः ॥ ३.४३॥
इस सूत्र में महर्षि मन की दो धारणाओं की सिद्धि से किस प्रकार योगी को विशेष प्रकार की विभूति प्राप्त होती हैं उसको समझा रहे हैं | मन का सामर्थ्य अनंत है, यदि उसे कुछ निश्चित प्रक्रियाओं के आधार पर दृढ अभ्यास में लगाया जाये तो अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिलते हैं | महर्षि इस सूत्र का अर्थ करते हुए कहते हैं कि-
शरीर के साथ सम्पर्क बनाये रखते हुए भी मन का शरीर से बाहर के पदार्थों के साथ व्यापार होता है । वह महाविदेहा नामक धारणा कहलाती है । इस धारणा से ज्ञान के प्रकाश पर पड़ने वाले आवरण का नाश हो जाता है ।
यह बहिरकल्पिता धारणा दो प्रकार से कही गई है- एक है कल्पित धारणा और दूसरी है अकल्पित धारणा |
कल्पित धारणा: जब मन शरीर के साथ संपर्क में रहते हुए ही शरीर से बाहर के पदार्थों, व्यक्तियों, स्थानों में अपने अनुभव को स्थापित करता है तो उसे कल्पित धारणा कहते हैं | इस स्थिति में मन किसी पुरानी स्मृति का आश्रय लेकर उसमें अपनी धारणा को दृढ करता है और फिर उस पुरानी स्मृति में दिखाई और अनुभव में आने वाले दृश्य, वस्तु,व्यक्ति, स्थान, वार्ता सबकुछ वैसे ही घटते हैं जैसे वे उस समय घटित हुए थे, लेकिन यह सबकुछ मन के शरीर के भीतर रहते हुए बाहर व्यापार हो रहा होता है |
इसकी विपरीत जब मन, स्थूल शरीर से बाहर निकल कर पूरी तरह कुछ समय के लिए बाहर ही अपने को किसी वस्तु, व्यक्ति, दृश्य के साथ स्थापित कर लेता है तो इसे मन की अकल्पित धारणा कहा जाता है |
ये दोनों धारणाएं अभ्यास का विषय हैं | योगी जब अभ्यास से इस प्रकार मन की धारणाओं को प्रयोग में लाता है तो निश्चित ही इसमें प्रारंभिक परिणाम आने शुरू हो जाते हैं |
प्रयोग के लिए आप ऐसा करें- कोई पुरानी ऐसी बात को (जो अच्छे से आपको स्मरण हो) मन से सोचें और उस स्थान पर मन को पूरी तरह लेकर जाएँ, अब वहां उस समय जैसा जैसा घटित हो रहा था उसे फिर से वैसा का वैसा ही घटित करने का प्रयत्न करें | वही भाव, वही वार्ता, वही लोग, वही स्थान, प्रत्येक चीज उतनी ही वास्तविक लगने लगे तो धीरे धीरे इस प्रकार के अभ्यास से आपको पुरानी घटित हुई बातें ऐसी लगेंगी जैसे अभी अभी घटित हुई हों |
इस प्रकार के अभ्यास से जब धारणा इतनी सशक्त हो जाती हैं की मन शरीर में रहते हुए भी बाहर हो और शरीर से बाहर रहते हुए भी बाहर हो तो मन की शक्तियां योगी को प्राप्त हो जाती हैं | क्योंकि मन सूक्ष्म है तो वही इस प्रकार की गति कर सकता है |