Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.51 ||

स्थान्युपनिमन्त्रणे सङ्गस्मयाकरणं पुनरनिष्टप्रसङ्गात् 


पदच्छेद: स्थानि-उपनिमन्त्रणे,सङ्ग-स्मय,अकरणम् , पुनः अनिष्ट-प्रसङ्गात् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • स्थानि- उच्च स्थान प्राप्त व्यक्तियों से
  • उपनिमन्त्रणे- आमंत्रण या बुलावा मिलने पर
  • सङ्ग- आसक्ति या राग
  • स्मय- अभिमान या अहंकार
  • अकरणम्- नहीं करना चाहिए
  • पुनः- नहीं तो फिर से
  • अनिष्ट - गलत या बाधा होने का, बंधन में पड़ने की
  • प्रसङ्गात् - प्रसंग या स्थिति आ सकती है

English

  • sthani - celestial beings
  • upanimantrane - invitation
  • sangga - attachment
  • smaya - pride
  • akarannam - not entertain
  • punah - again
  • anishta - undesirable
  • prasanggat - possibilities of being caught.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उच्च स्थान प्राप्त किसी व्यक्ति या कुल के द्वारा निमन्त्रण मिलने पर योगी को राग, अभिमान या अहंकार नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से योग मार्ग से पुनः नीचे गिरने का अवसर उपस्थित हो जाता है ।

Sanskrit:

English: The yogi should avoid enthusiasm or pride in the enticements of the celestial beings, for he is in danger of being caught once more by ignorance.

French:

German: Hochmut sowie die Verlockung von Ehrungen sind zu meiden, denn die Berührung mit dem Unerwünschten ist weiterhin möglich.

Audio

Yog Sutra 3.51

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • German
  • Yog Kavya

इस प्रकार महर्षि पतंजलि ने  विभूतिपाद के अंत तक आते-आते अनेक प्रकार की सिद्धियों की चर्चा कर दी है।  अब महर्षि एक चेतावनी के रूप में इस सूत्र के माध्यम से योगी को सावधान कर रहे हैं।  सब प्रकार की सिद्धियां मिलने के बाद योगी को बहुत सावधानी से उन शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए और प्रयोग व्यक्तिगत सामर्थ्य प्रदर्शन के लिए नहीं अपितु लोक कल्याण के लिए होना चाहिए। और वह भी जब अत्यावश्यक हो तभी शक्तियों का प्रयोग पूरी निराभिमानिता के साथ करना चाहिए। लेकिन इस प्रकार की स्थिति में अपनी शक्तियों के प्रति अहंकार का भाव और सर्वोच्चता का भाव आने की संभावना रहती है। योगी के आस पास जो लोग रहते हैं वे सब भी अहंकार, राग, द्वेष के कारण बन सकते हैं। 

 

जब शक्तियों का प्रदर्शन होता है तो प्रसिद्धि चारों ओर फैलने से बड़े बड़े उद्योगपति, प्रतिष्ठित व्यक्ति, संस्थान, शक्तिशाली लोग योगी से अपना संपर्क बनाने की कोशिश करते हैं जिससे योगी के मन में ऐसे लोगों के प्रति राग और इनसे विपरीत लोगों के प्रति द्वेष का भाव आ सकता है।

 

जब समाज के शक्तिशाली लोग योगी को निमंत्रण पर बुलाते हैं और एक विशेष श्रद्धा एवं आदर का भाव दिखाते हैं तो राग और द्वेष की संभावना बढ़ती है।

 

इसलिए महर्षि इन सब विषयों के ऊपर योगी को सावधान रहने की बात कर रहे हैं। इन सब बातों से नीचे गिरने की संभावना रहती जिससे योगी को पुनः अपनी साधना प्रारंभ करनी पड़ती है और इस बार सबकुछ आसान नहीं रहता क्योंकि यह भी संभव हो कि योगी को पता ही न चले कि यह साधना से गिरने जैसा है। 

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