इस प्रकार महर्षि पतंजलि ने विभूतिपाद के अंत तक आते-आते अनेक प्रकार की सिद्धियों की चर्चा कर दी है। अब महर्षि एक चेतावनी के रूप में इस सूत्र के माध्यम से योगी को सावधान कर रहे हैं। सब प्रकार की सिद्धियां मिलने के बाद योगी को बहुत सावधानी से उन शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए और प्रयोग व्यक्तिगत सामर्थ्य प्रदर्शन के लिए नहीं अपितु लोक कल्याण के लिए होना चाहिए। और वह भी जब अत्यावश्यक हो तभी शक्तियों का प्रयोग पूरी निराभिमानिता के साथ करना चाहिए। लेकिन इस प्रकार की स्थिति में अपनी शक्तियों के प्रति अहंकार का भाव और सर्वोच्चता का भाव आने की संभावना रहती है। योगी के आस पास जो लोग रहते हैं वे सब भी अहंकार, राग, द्वेष के कारण बन सकते हैं।
जब शक्तियों का प्रदर्शन होता है तो प्रसिद्धि चारों ओर फैलने से बड़े बड़े उद्योगपति, प्रतिष्ठित व्यक्ति, संस्थान, शक्तिशाली लोग योगी से अपना संपर्क बनाने की कोशिश करते हैं जिससे योगी के मन में ऐसे लोगों के प्रति राग और इनसे विपरीत लोगों के प्रति द्वेष का भाव आ सकता है।
जब समाज के शक्तिशाली लोग योगी को निमंत्रण पर बुलाते हैं और एक विशेष श्रद्धा एवं आदर का भाव दिखाते हैं तो राग और द्वेष की संभावना बढ़ती है।
इसलिए महर्षि इन सब विषयों के ऊपर योगी को सावधान रहने की बात कर रहे हैं। इन सब बातों से नीचे गिरने की संभावना रहती जिससे योगी को पुनः अपनी साधना प्रारंभ करनी पड़ती है और इस बार सबकुछ आसान नहीं रहता क्योंकि यह भी संभव हो कि योगी को पता ही न चले कि यह साधना से गिरने जैसा है।