ते समाधावुपसर्गा व्युत्थाने सिद्धयः ॥ ३.३७॥
पूर्व सूत्र में वर्णित सभी ६ सिद्धियाँ समाधि की स्थिति के लिए तो बाधा स्वरुप हैं लेकिन यही सिद्धियाँ व्युत्थान काल (अर्थात जब चित्त समाहित न होकर लौकिक व्यवहार में चलायमान होता है, त्रिगुणों का प्रभाव रहता है) में ये सिद्धि स्वरुप फलदायी होती हैं |
इसलिए इन ६ प्रकार की सिद्धिओं का उपयोग व्युत्थान काल में ही करना चाहिए और साधक को तो अत्यावश्यक होने पर लोक कल्याण के लिए ही करना चाहिए अन्यथा इन्हीं सिद्धिओं के फेर में पड़कर साधक अपने सबसे बड़े लक्ष्य, समाधि को भूल सकता है |
यहाँ व्युत्थान काल को एक बार पुनः समझ लेते हैं- व्युत्थान काल उसे कहा गया है जब चित्त में त्रिगुणों का प्रभाव रहता है और चित्त चंचल होने से उसमें एकाग्रता नहीं रहती है जिससे मन या | चित्त में जैसे भी विचार उठते हैं वैसा ही चित्त भाव करने लग जाता है |
चूँकि इन सिद्धियों में अधिकतर इन्द्रियों से सम्बंधित कार्य है तो इसलिए भी ये सिद्धियाँ समाधि में बाधा हैं और केवल व्युत्थान काल में ही इनका उपयोग लोक कल्याण के लिए किया जाना चाहिए |