अब हम विभूतिपाद के अंतिम सूत्र पर चर्चा कर रहे हैं। इस सूत्र के साथ विभूतिपाद संपन्न हो जायेगा ।
इस अंतिम सूत्र के साथ महर्षि पतंजलि कैवल्य के स्वरूप की बात कर रहे हैं कि कैवल्य कैसा होता है।
योग साधना के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते हुए जब योगी अपनी जीवात्मा और बुद्धि की एक साथ शुद्धि कर लेता हैं तब उसे कैवल्य अर्थात केवलता की प्राप्ति होती है।
महर्षि का तात्पर्य है कि जैसे ही योगी बुद्धि और पुरुष दोनों को अलग अलग ठीक ठीक समझ लेता है तो इसी प्रक्रिया में आगे चलकर एक ऐसी स्थिति आती है जब बुद्धि गुणातीत हो जाती है और पुरुष बुद्धि के गुणातीत होने की अपेक्षा से निर्मल हो जाता है। यही बुद्धि और पुरुष का शुद्धि साम्य कहा गया है।
और जब दोनों बुद्धि और पुरुष अर्थात जीवात्मा की शुद्धि हो जाती है तब यह स्थिति कैवल्य की स्थिति कहलाती है।
कैवल्य को केवलता भी कहा जाता है , जिसका अर्थ होता है पुरुष का केवल शेष रह जाना
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