Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.54 ||

तारकं सर्वविषयं सर्वथाविषयम् अक्रमं चेति विवेकजं ज्ञानम् 


पदच्छेद: तारकं, सर्व-विषयं, सर्वथा-विषयम् , अक्रमं, च-इति,विवेकजं, ज्ञानम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तारकं -स्वयं की प्रतिभा अर्थात योग्यता, साधना से उत्पन्न होने वाला ज्ञान
  • सर्वविषयं -सभी ज्ञेय तत्त्वों को जानने वाला
  • सर्वथा -सदा अर्थात भूतकाल, वर्तमान काल व भविष्य काल में
  • विषयम् -सभी विषयों को जानने वाला
  • च -और
  • अक्रमम् -बिना क्रम के
  • इति - ऐसा या इस प्रकार का
  • विवेकजं -विवेक से उत्पन्न
  • ज्ञानम् -ज्ञान कहलाता है ।

English

  • tarakam - transcendent
  • sarva - all
  • vishayam - things
  • sarvatha - at all times
  • vishayam - objects
  • akramam - hansi sequence
  • cha - and
  • iti - this
  • viveka - discernment
  • ja - born
  • jnanam - knowledge.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: योगी के स्वयं के योग साधना से प्राप्त सामर्थ्य से उत्पन्न होने वाला, जो सभी पदार्थों के विषयों को उनके सभी कालों भूत, वर्तमान व भविष्य को जानने वाला होता है और यह सब बिना किसी क्रम अर्थात विभाग के ही पैदा होने वाला ज्ञान होता है । ऐसे ज्ञान को विवेकज या विवेक से उत्पन्न ज्ञान कहा जाता है ।

Sanskrit: 

English: Knowledge of discernment is transcendent, comprehensive, concerned with all states of things and instantaneous.

French: 

German: Solches Wissen, welches aus innerer Klarheit kommt, entsteht spontan und ohne aufeinander aufbauende Schritte. Es ist in Bezug auf alle Objekte da, zu jedem Zeitpunkt.

Audio

Yog Sutra 3.54

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

पूर्व के दो सूत्रों में विवेकज्ञान के विषय में अलग अलग प्रकार से चर्चा महर्षि ने की है। अब महर्षि विवेकज्ञान क्या होता है? विवेकज्ञान की मुख्य क्या विशेषताएं हैं उनके विषय में बात कर रहे हैं।

क्योंकि विवेकज्ञान का वास्तविक स्वरूप क्या है यह प्रश्न शिष्यों के मन में आना स्वाभाविक था।

महर्षि पतंजलि विवेकज्ञान की चार मुख्य विशेषताओं की बात कर रहे हैं।

1. तारक
2. सर्व विषय
3. सर्वथा विषय
4. अक्रम

अर्थात, योगी की स्वयं को मति या स्व सामर्थ्य से उत्पन्न होने वाला, सब विषयों का यथार्थ बोध कराने वाला, मुक्ति मार्ग में सभी आवश्यक पदार्थों, तत्त्वों का सब काल का ज्ञान कराने वाला, और जो बिना क्रम का अर्थात अबाधित ज्ञान कराने वाला ज्ञान है उसे विवेकज्ञान कहा गया है।

*तारक ज्ञान:* जो योग साधना करते करते योगी की स्वयं को प्रतिभा से उत्पन्न ज्ञान होता है उसे तारक ज्ञान कहते हैं। इसे ही शास्त्रों में प्रत्युत्पन्न मति भी कहा गया है। यह बुद्धि योग साधना के साथ साथ उत्पन्न होती रहती है। इस स्थिति में योगी को स्वयं से ही सत्य ज्ञान की अनुभूति होती रहती है। अचानक से कुछ स्फूर्णा होती है और बुद्धि में ज्ञान का प्रकाश होने लग जाता है।

सर्व विषय: विवेकज्ञान, योगी को सभी विषयों का ठीक ठाक ज्ञान कराने वाला होता है। जो कुछ भी मोक्ष के लिए जानने योग्य विषय हैं, उन सबका ज्ञान योगी को होने लगता है। इसे ही सर्व विषय के नाम से महर्षि कह रहे हैं।

सर्वथा विषय: केवल सभी विषयों का ज्ञान ही नहीं, सभी विषयों, पदार्थों के सभी कालों में उनकी स्थिति या अवस्था पूर्व में कैसी रही और आगे भविष्य में कैसी स्थिति या अवस्था रहेगी इसका ज्ञान भी विवेकज्ञान कराता है। चूंकि विवेकज्ञान का विषय इतना बड़ा है कि उसे किसी एक विशेषण से कहना असंभव है इसलिए महर्षि विवेकज्ञान की व्याख्या करते हुए अलग अलग विशेष साथ में लगा रहे हैं।

अक्रम: सामान्य या लौकिक ज्ञान क्रमपूर्वक होता है अर्थात एक ज्ञान के बाद तत्क्षन दूसरा ज्ञान उदित हो जाता है इस प्रकार हमारे ज्ञान या अनुभव में यह क्रम चलता रहता है। कभी भी एक ही ज्ञान की अखंडित अवस्था नहीं रहती है। लेकिन जब विवेकज्ञान उत्पन्न होता है तब जिस भी विषय में हम जान रहे हैं उसके विषय में तैल धारावत अखंड, अक्रम से अबाधित ज्ञान होता है। इसे ही अक्रम विशेषण से महर्षि कह रहे हैं।

विवेकज्ञान ,साधना के उपरांत बुद्धि की सात्विक अवस्था है अतः इसे सामान्य रूप से समझना कठिन है क्योंकि यह सबके अनुभव का विषय नहीं होता है। विवेकज्ञान की झलक लंबी तपस्या और योग साधना से हो संभव हो पाती है। योगी को प्रारंभ में ही कुछ अनुभव होने लग जाते हैं जिसे आधार बनाकर वह निरंतर अपने साधना के पथ पर आगे बढ़ता जाता है।

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