Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.31 ||

कूर्मनाड्यां स्थैर्यम् 


पदच्छेद: कूर्म,नाड्याम् ,स्थैर्यम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • कूर्म -कूर्म (गले से नीचे उदर स्थल में कछुए की आकार की नाड़ी होती है)
  • नाड्याम्-नाड़ी में संयम करने से
  • स्थैर्यम् -योगी के शरीर में स्थिरता आ जाती है |

English

  • koorma - tortoise, kurma
  • nadyam - tube
  • sthairyam - firmness, fixity.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: कूर्म (गले से नीचे उदर स्थल में कछुए की आकार की नाड़ी होती है) नामक नाड़ी में संयम करने से योगी को स्थिरता की प्राप्ति होती है ।

Sanskrit:

English:

French:

German: Samyama ( Versenkung) in Kūrmanādī ( den Brustbeinbereich) führt zu Stabilität.

Audio
Yog Sutra 3.31

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

कूर्मनाड्यां स्थैर्यम् ॥ ३.३१॥

कूर्म नाड़ी में धारणा-ध्यान और समाधि (संयम) करने से साधक को को स्थिरता की प्राप्ति होती है और यह स्थिरता शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, हार्दिक एवं आत्मिक होती है |

साधक के अस्तित्व के सभी आयामों या पहलुओं में एक ठहराव आने लग जाता है न कहीं साधना के अन्य पक्षों को भी स्थिरता प्रदान करने लग जाता है |

 

इसलिए तो साधना के क्षेत्र में किसी एक आयाम की ओर किया गया पुरुषार्थ जब सिद्धि  को प्राप्त होता है तो जीवन से सम्बन्घित अनगनित पक्षों की पूर्णता में सहयोगी हो जाता है | अचानक से जीवन में बहुत कुछ शुभ के रूप में बदलने लग जाता है |

कूर्म नाड़ी कंठकूप से थोड़ा नीचे छाती की तरफ होती है और इसका आकार कछुए की तरह होता है | जब साधक अपनी श्वासों को शांत करते हुए, प्राणयाम पूर्वक संयम का अभ्यास करता है तो जितनी भी चंचलता है, अस्थिरता है प्राणों सहित, मन, बुद्धि, ह्रदय एवं आत्मा में वह सबकुछ धीरे धीरे कम होने लग जाती है |

 

एक बार प्राणों में सहजता आ जाए तो फिर मन में भी ठहराव आने लग जाता है | हठयोग प्रदीपका में इसी विषय में एक श्लोक आया है-

चले वाते चलं चित्तं निश्चले निश्चलं भवेत् । योगी स्थाणुत्वमाप्नोति ततो वायुं निरोधयेत् ।। 2 ।। अर्थात  प्राणवायु के चलायमान होने से हमारा मन भी चलायमान या चंचल होने लगता है । और प्राणों  के ठहर जाने से  मन भी स्थिर होने लग जाता है । इसलिए प्रतिदिन प्राणायाम के अभ्यास से योगी अपने शरीर सहित मन, बुद्धि, ह्रदय एवं आत्मा सब में स्थिरता प्राप्त कर लेता है जिससे उसकी साधना अच्छे से आगे बढ़ने लग जाती है |

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