Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.47 ||

ग्रहणस्वरूपास्मितान्वयार्थवत्त्वसंयमादिन्द्रियजयः 


पदच्छेद: ग्रहण-स्वरुप-अस्मिता-अन्वय-अर्थवत्त्व-संयमाद्-इन्द्रियजय:॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • ग्रहण-आँख आदि इन्द्रियों का रूप आदि विषयों के साथ जुड़ना
  • स्वरूप-इन्द्रियों के कार्य
  • अस्मिता-सूक्ष्म अवस्था
  • अन्वय-अत्यंत सूक्ष्म अवस्था
  • अर्थवत्त्व-इन्द्रियों का उद्देश्य (भोग एवं अपवर्ग)
  • संयमाद्-इन्द्रियों के पांचो विभागों में संयम करने से
  • इन्द्रिय-इन्द्रियों पर
  • जय:-विजय प्राप्त होती है

English

  • grahanna - receptivity
  • svaroopa - in its own nature
  • asmita - I-sense
  • anvaya - inherence
  • arthavattva - objectiveness
  • sanyamad - through samyama
  • indriya - senses
  • jayah - mastery.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: इन्द्रियों की ग्रहण, स्वरूप, अस्मिता, अन्वय व अर्थवत्त्व इन पांच विभागों में संयम करने से योगी सभी इन्द्रियों पर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेता है ।

Sanskrit: 

English: By making samyama on the receptivity, essential character, I-ness, inherent quality and objectiveness of the five organs, one gains mastery of the organs.

French:

German: Das wahrgenommene Objekt/ Thema, das Mittel der Wahrnehmung, die Ichbezogenheit in der Wahrnehmung, das Zusammenspiel dieser drei Faktoren einer Wahrnehmung und der Zweck hinter dieser Wahrnehmung - Samyama ( Versenkung) in dieses Thema führt zum Sieg über die Sinne.M

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Yog Sutra 3.47

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

ग्रहणस्वरूपास्मितान्वयार्थवत्त्वसंयमादिन्द्रियजयः ॥ ३.४७॥

महर्षि पतंजलि ने पूर्व के सूत्रों में जिन पञ्च महाभूतों की स्थूल, स्वरुप,सूक्ष्म, अन्वय और अर्थवत्त्व नामक पांच अवस्थाओं के विषय में विस्तार से बताकर फिर योगी द्वारा उनके ऊपर संयम करके अणिमा आदि अष्ट सिद्धियों एवं शरीर के विशेष सामर्थ्य से युक्त हो जाने की बात कही थी और उसी प्रकार प्रस्तुत सूत्र में इन्द्रियों की पांच इन्द्रियों के ऊपर संयम करने का फल बता रहे हैं |

ग्रहण – यह इन्द्रियों की सर्वप्रथम अवस्था है जिसका मुख्य कार्य है इन्द्रियों से कार्यों को सम्पादित करना | आँख की ग्रहण अवस्था है  है वस्तुओं को देखना,  कान की ग्रहण अवस्था है सुनना, नाक की ग्रहण अवस्था है गंध महसूस करना, जिह्वा की ग्रहण अवस्था है किसी खाद्य पदार्थ का स्वाद महसूस करना और त्वचा इन्द्रिय की ग्रहण अवस्था है स्पर्श करना | इस प्रकार पांच इन्द्रियों के ग्रहण अवस्था पर अलग अलग धारणा-ध्यान और समाधि का जब योगी अभ्यास करता है तो उसके भीतेर इन्द्रियों की जीतने की शक्ति आ जाती है |
स्वरूप – इन्द्रियों की दूसरी अवस्था का नाम है स्वरुप अवस्था | होती है । इस अवस्था में प्रत्येक इन्द्रिय के कार्यों का स्वरुप तय होता है | जैसे आँख का कार्य क्या होगीं?  नाक,कान,जिह्वा और त्वचा के अलग अलग कार्य इस अवस्था में तय होते हैं |
अस्मिता :- अस्मिता इन्द्रियों की तीसरी अवस्था है जो और सूक्ष्म होती चली जाती है | यह भी इन्द्रियों की तन्मात्रा की अवस्था मानी जाती है जो त्रिगुणों से मिलकर बनती है | प्रत्येक इन्द्रिय की अपनी तन्मात्राएँ होती हैं जिनके आधार पर उनका स्वरुप अवस्था निर्भर करती है | 
अन्वय – अस्मिता से भी ऊपर एक और सूक्ष्मतर अवस्था आती है इन्द्रियों की जिसे अन्वय अवस्था कहते हैं | यह मूल प्रकृति अर्थात सत्त्व, रजस और तमस से मिलकर बनती है | महर्षि पतंजलि ने  सत्त्व गुण को प्रकाश वाला, रजस गुण को क्रियाशील और तमस गुण को स्थिति स्वरुप वाला बताया है | योगी द्वारा जब इन ग्रहण, स्वरुप, अस्मिता और अन्वय अवस्था के ऊपर अच्छी प्रकार संयम किया जाता है तो इन्द्रियों के ऊपर विजय प्राप्त हो जाती है | विजय प्राप्त होने के बाद किन सिद्धियों की प्राप्ति होती है ये महर्षि अगले सूत्र में विस्तार से बताएँगे | 
अर्थतत्त्व – इन्द्रियों की यह अन्तिम अवस्था है । महाभूतों की तरह इन्द्रियों का उद्देश्य है पुरुष को भोग एवं अपवर्ग (मोक्ष) की प्राप्ति कराना | अतः इन्द्रियों की अर्थवत्तता यही है कि वह पुरुष अर्थात आत्मा को भोग और मुक्ति दोनों प्रदान करें | जब योगी इन्द्रियों की इस अवस्था पर संयम करता है तो उसे इन्द्रियों पर वशता प्राप्त हो जाती है |

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3 thoughts on “3.47”

  1. Vishnu Raut says:

    Very Nice and useful commentry

    1. admin says:

      Vishnu ji, thank you for words. We are committed to bring heart ancient knowledge accessible to all in simpler language. Please share with others too.

    2. admin says:

      Thank you vishnu ji

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