Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.1 ||

जन्मौषधिमन्त्रतपःसमाधिजाः‌ ‌सिद्धयः‌ ‌


पदच्छेद: जन्म-औषधि-मन्त्र-तप:-समाधिजा:-सिद्धयः ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • जन्म- जन्म से
  • औषधि- औषधियों से
  • मन्त्र- शक्तिशाली मंत्रो के जप करने से
  • तप:- तप करने से
  • समाधिजा:- समाधि से
  • सिद्धयः- अनेक प्रकार की सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं ।

English

  • janma - birth
  • aushadhi - herbs
  • mantra - incantations
  • tapah - austerities
  • samadhi - concentration
  • jah - come
  • siddhayah - the siddhi.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जन्म से, औषधियों एवं रसायनों के सेवन से, गायत्री आदि शक्तिशाली मंत्रों के जप से, तप करने से और धारणा, ध्यान एवं समाधि के अभ्यास से योगी में अनेक सिद्धियाँ उत्पन्न होती हैं ।

Sanskrit: 

English: The Siddhis(powers) are attained by birth, by herbs, incantations, austerities or concentration.

French: 

German: Übernatürliche Kräfte können angeboren sein oder durch Heilpflanzen, Rezitationen, Askese oder den Yogaweg erworben werden.

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Yog Sutra 4.1

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

योगसूत्र के अंतिम और चौथे पाद कैवल्य में महर्षि अब सिद्धियों के कारणों पर बात कर रहे है। चूंकि पूर्व के सूत्रों में सर्वत्र सिद्धियों की बात हुई है तो शिष्यों को सहज जिज्ञासा हुई कि यह सिद्धियां क्या केवल धारणा, ध्यान और समाधि स्वरूप संयम से ही प्राप्त होंगी या कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं।

शिष्यों के मन में यह प्रश्न इसलिए भी आया कि क्या केवल योग के अभ्यास से ही सिद्धियां मिल सकती हैं या योग से इतर भी अन्य साधन हो सकते हैं?

 

तब महर्षि शिष्यों से कहते हैं कि सिद्धियां 5 प्रकार से मिलती हैं।

 

जन्म से

षधि से

मंत्रों से

तप से

समाधि के द्वारा

जन्म से सिद्धि: जिन योगियों के पूर्व जन्म में योग में अच्छी स्थिति थी लेकिन प्रारब्ध वश साधना के बीच में ही शरीर छूट गया, उनमें से किसी को जन्म से ही सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। अर्थात ऐसे योगियों को बिना किसी विशेष पुरुषार्थ के ही कुछ सिद्धियां समय के साथ मिलने लग जाती हैं। जिन सिद्धियों की बात महर्षि ने पूरे विभूति पाद में किया है उनमें से कुछ सिद्धियां जन्मजात रूप से योगी को सहज ही उपलब्ध हो जाती हैं।

 

औषधि से सिद्धि: आगे महर्षि बताते हैं कि औषधि के प्रयोग से कुछ सिद्धियां को प्राप्त किया जाता है। किसी को भी सिद्धि तब प्राप्त होती है जब वह अपने शरीरस्थ या उससे बाहर किसी अंग विशेष या पदार्थ विशेष पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर लेता है। जब यही कार्य किसी औषधि के सेवन से संपन्न होता है तो सिद्धि प्राप्त होने लग जाती है।

औषधि जब शरीर में जाती है तो रासायनिक क्रियाओं को संपन्न करती हुई अंग विशेष पर जो प्रभाव पड़ने से वशता आती है, उससे सिद्धि मिलने लग जाती है।

 

पूर्व में भी कई ऐसे उदाहरण हमें सुनने और पढ़ने में आते हैं जहां पर वृद्ध शरीर का पुनः यौवन को प्राप्त हो जाना। जैसे चव्यन ऋषि जी पुनः अपने युवास्था को प्राप्त हो गए थे केवल युवास्था ही नहीं अपितु उन्हें रूप, लावण्य, बल और वज्र जैसी सिद्धि भी साथ में प्राप्त हो गई थी। मं

मत्रों से सिद्धि: मंत्रों के नियमित जप से मन एकाग्र हो जाता है। एकाग्र मन से जब जप उत्कृष्ट कोटि का हो जाता है तो मन से संबंधित सिद्धियां व्यक्ति को प्राप्त होने लग जाती हैं।

तप से सिद्धि: शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक भेद की दृष्टि से तप तीन प्रकार के होते हैं। किसी एक प्रकार के तप के अभ्यास से भी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।  शारीरिक तप के अभ्यास से शरीर संबंधी सिद्धि की प्राप्ति होती है और मानसिक तप करने से इंद्रियों एवं पंच महाभूत संबंधी वशता प्राप्त होकर उससे संबंधित सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इसी प्रकार जब हम सभी द्वंद रूप तप का अभ्यास करते हैं तो आध्यात्मिक बल स्वरूप सिद्धियां मिलती हैं।

महर्षि पतंजलि तप की परिभाषा करते हुए कहते है कि द्वंद्वों को सहन करना ही तप है। सर्दी, गर्मी, लाभ, हानि, जय, पराजय, मान, अपमान आदि सभी द्वंद्वों को सहन करना तप कहलाता है। तप करने की विशेषता यही है कि जब दो विपरीत स्थिति और परिस्थिति के बीच व्यक्ति फंस जाता है तब सहनशील होकर शांत रहने का अभ्यास करना। जब हम कुछ भी नहीं चुनते हैं बस निष्पक्ष होकर, दृष्टा भाव या साक्षी भाव में स्थित हो जाते हैं। इस प्रकार तप करने से अलग अलग सिद्धियों की प्राप्ति होने लग जाती है।

 

समाधि से सिद्धि: योगाभ्यास से जब क्लेश तनु हो जाते हैं और मन, चित्त और हृदय निर्मल हो जाता है तो धारणा, ध्यान और समाधि स्वरूप संयम को शरीर में या शरीर से बाहर किसी बिंदु, तत्त्व में लगाने से तत्संबंधी विषयों के ऊपर वशता प्राप्त हो जाती है और अनेकानेक सिद्धियां प्राप्त होने लग जाती हैं। इस प्रकार प्राप्त सिद्धियों को समाधिज सिद्धि कहा जाता है।

 

इस प्रकार महर्षि पतंजलि ने किस प्रकार सिद्धियों को अलग अलग स्त्रोतों से प्राप्त किया जाता है इसके विषय में विस्तृत रूप से बताया है।

 

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सूत्र: जन्मौषधिमन्त्रतपःसमाधिजाः‌ ‌सिद्धयः‌

 

सफलता जिससे हो मिलती वो सिद्धि कहलाती है 

कभी जन्म तो कभी औषधि से साधक सम्मुख आती है 

मन्त्रों के जप-तप से भी साधक सिद्धि को पाते हैं 

पूर्ण सफलता मिलती योगी को जब वे समाधि लगाते हैं 

10 thoughts on “4.1”

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  3. Usha Devi says:

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  4. Sarika says:

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  5. dharankar says:

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  6. Rajesh Kumar says:

    योगदर्शन की सूत्रों बहुत सरलता से शब्दार्थ सहित सूत्र का भावार्थ, व्याख्या व वाचन के इस उत्कृष्ट कार्य के सहृदय धन्यवाद।

  7. Alok Prasad says:

    The superfine works

  8. Dr Mrs Sujata Sudhir Mulmule says:

    उत्तम विश्लेषण

  9. Garima Bohra says:

    No explanation is there pls give at least Hindi explanation 🙏😭

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