Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.10 ||

‌‌तासामनादित्वं‌ ‌चाशिषो‌ ‌नित्यत्वात्‌ ‌


पदच्छेद: तासाम्-अनादित्वं , च-आशिष:,‌नित्यत्वात् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • आशिष:- जिजीविषा (जीवित रहने कि इच्छा) का
  • नित्यत्वात्- सतत विद्यमान होने से
  • तासाम्- उन सभी संस्कारों अथवा वासनाओं का
  • अनादित्वं- अनादित्व
  • च - सिद्ध होता है

English

  • tasam - those
  • anaditvam - beginningless
  • cha - and
  • ashish - desire for life
  • nityatvat - eternal.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जिजीविषा अर्थात जीवित रहने की इच्छा की सतत विद्यमानता होने से उन वासनाओं या संस्कारों का प्रवाह अनादिकाल से ही निरन्तर चलता रहता है ।

Sanskrit: 

English: Since the desire to live is eternal, the impressions are also beginningless.

French: 

German: Die Vāsanās ( subtilen Triebe), die vergangene Erinnerungen und Neigungen wachrufen, sind ursprunglos, so wie der innere Wunsch jedes Lebewesens, unsterblich zu sein.

Audio

Yog Sutra 4.10

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

अब महर्षि अगली बात कर रहे हैं कि मनुष्य के भीतर सदा जीने की इच्छा होने के कारण वासनाओं का प्रवाह आदि काल से है अर्थात वासनाओं से भी सदा से चली आ रही हैं और आगे भी ऐसे ही चलती आयेंगी ।

प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह कभी न मरे। वह सदैव रहना चाहता है। उसकी यही चाहना बाकी सब चाहनाओं का मूल स्त्रोत है। क्योंकि उसको पता है जब तक जीवन है तभी तक सब अनुभव हैं, सब भोग हैं। इसलिए सदा बने रहने की चाह ही सब चाहों की जननी है। सब वासनाओं का आधार है।

यदि इस एक वासना का उच्छेद हो जाए अर्थात इसको हम समाप्त कर लें तो धीरे धीरे अन्य कर्म संस्कारों की पकड़ ढीली पड़ जायेगी।

महर्षि एक ओर वासना के अनादि प्रवाह की सत्यता बता रहे हैं और दूसरी ओर एक बड़े उपाय या साधन की ओर स्पष्ट संकेत कर रहे हैं कि निष्काम कर्म करते हुए इस सदा जीवन बने रहने की वासना से धीरे धीरे मुक्त हुआ जाय तो फिर यह साधना मोक्ष मार्ग में अत्यंत सहायक हो जाती है।

मैं कभी मरूं नहीं अपितु सदा जीवित रहूं यह भावना इतनी बलवती क्यों है? क्योंकि प्रत्येक जन्म में जब मृत्यु के क्षण निकट आए तब जीव मृत्यु के भय से भरता रहा। मृत्यु के क्षण में मरूं नहीं यह प्रबल भाव इकट्ठा करता रहा लेकिन बचा नहीं। मृत्यु को संकट मानकर उसके प्रति अभिनिवेष का भाव बढ़ाता गया तो सदा जीने की वासना भी साथ साथ में प्रबल होती गई। जो कि फिर सब वासनाओं का आधार बन गई।

इसलिए यदि मृत्यु के भय से छूटा जाय तो बाकी वासनाओं के प्रभाव से भी आसानी से छूटा जा सकता है।

मनुष्य को यह अच्छे से पता है कि जीवन रहेगा तभी अन्य भोग रहेंगे। इसलिए वह सदा बना रहूं इस वासना को नहीं छोड़ना चाहता है।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: तासामनादित्वं‌ ‌चाशिषो‌ ‌नित्यत्वात्‌

 

निरोध अवस्था में क्या होता है?

बीज शांति के मन बोता है

सहज सरल चित्त बहता अविरल

बंद हो जाते हैं सब कोलाहल

निरोध अवस्था का परिणाम यही है

शांत मन -चित्त का विश्राम यही है

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