Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.9 ||

जातिदेशकालव्यवहितानामप्यानन्तर्यं‌ ‌स्मृतिसंस्कारयोरेकरूपत्वात्‌ ‌


पदच्छेद: जाति-देश-काल-व्यहितानाम्-अपि-‌आनन्तर्यम् ,स्मृति-संस्कारयो:-एकरूपत्वात् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • जाति- जीव शरीर
  • देश- स्थान
  • काल- समय के
  • व्यवहितानाम्- बाधा या अन्तर उत्पन्न होने पर
  • अपि- भी
  • स्मृति- स्मृति और
  • संस्कारयो:- कर्म संस्कारों ककी
  • एकरूपत्वात्- एक समान या एक ही विषय वाले होने से
  • आनन्तर्यम्- कोई व्यवधान नहीं होता

English

  • jati - birth
  • desha - space
  • kala - time
  • vyavahitanam - separated
  • api - even
  • anantaryam - uninterrupted sequence
  • smriti - of memory
  • sanskarayoh - deep impressions
  • ekaroopatvat - similarity.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: स्मृति और संस्कार की एकरूपता होने के कारण जाति , स्थान, व काल से बाधित होने पर भी वासनाएं प्रकट हो जाती हैं ।

Sanskrit:

English: There is connectiveness in desire, even though separated by birth, space and time, there being identification of memory and latent impressions.

French: 

German: Die Vāsanās ( die subtilen Triebe) sind wirksam, obwohl die ursprünglichen Handlungen (die zur Bildung der subtilen Triebe beitrugen) in einem anderen Zusammenhang, an einem anderen Ort und zu einem anderen Zeitpunkt stattfanden, weil Erinnerung und Samskāra ähnliche Kräfte sind.

Audio

Yog Sutra 4.9

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • Yog Kavya

इससे पूर्व के सूत्र में महर्षि ने बताया कि कैसे तीन प्रकार के कर्मों के फलों के आधार पर तदनुसार इच्छाएं या वासनाएं प्रकट होती हैं। इसी बात पर एक जिज्ञासा उठी कि कैसे इतना सटीक संभव है कि जैसा कर्म होगा उसका वैसा ही फल होगा और फिर वैसी ही मनुष्य के भीतर वासनाएं उठेंगी?

 

इस प्रश्न या जिज्ञासा का उत्तर देते हुए महर्षि कह रहे हैं कि जब मनुष्य इन तीन कर्मों में से कुछ भी करता है तो करते करते उसे उन उन कर्मों का अभ्यास हो जाता है, फिर वैसी प्रवृति बनने लग जाती है। फिर यह अभ्यास और प्रवृति बार बार मनुष्य द्वारा की जाती है तो इसके सूक्ष्म संस्कार उसकी स्मृति के हिस्सा बन जाते हैं। चूंकि स्मृति संस्कारों से बनती है तो स्मृति और संस्कार में किसी भी प्रकार का कोई भेद नहीं है।

 

जितने दृढ़ संस्कार होंगे उतनी ही दृढ़ स्मृति होगी इसलिए स्मृति और संस्कार में एकरूपता की बात महर्षि कह रहे हैं।

 

अब जब पूर्व जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार फल मिलेगा अर्थात किसी योनि में जन्म मिलेगा फिर वह जन्म किसी स्थान या जगह पर होगा और साथ में कोई समय भी उस जन्म का होगा तो इन सबमें यदि कोई भेद भी होगा पूर्व जन्म की अपेक्षा से तो स्मृति और संस्कार के एकरूप होने से इसमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा ऐसा महर्षि कह रहे हैं।

 

किसी जाति में जन्म से यहां महर्षि का अर्थ है मनुष्य जाति में या पशु जाति में। कीट पतंगों की जाति में। ऐसे जाति में भी फिर और जाति बनाई जा सकती है। यहां जाति शब्द से प्राणी वर्ग की बात कर रहे हैं न कि आज के समय में प्रचलित जाति ( ब्राह्मण, ठाकुर इत्यादि)।

 

स्थान से यहां जगह की बात कर रहे हैं। जैसे भारत एक स्थान है विशेष है। अमेरिका एक जगह है। इसलिए आपने देखा होगा कई देशों के नाम के आगे स्थान भी लिख दिया जाता है। जैसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान ( स्थान का स्तान हुआ है, यह अपभ्रंश रूप है)।

 

और समय का अर्थ तो स्पष्ट है ही। जैसे सन 1920 का एक समय है और आज 2023 का अपना एक समय है।

 

इसलिए महर्षि कह रहे हैं कि संस्कार से ही स्मृति बनी होने के कारण उनमें एकरूपता है जिसके कारण से चाहे किसी भी जाति में, स्थान विशेष में या समय या काल में जन्म हो जाए कर्मों के संस्कार और स्मृति में अभेद होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

 

अर्थात जैसे पहले गाय, मनुष्य पैदा होते थे, जिस भी जगह पैदा होते थे और जिस भी काल में पैदा होते थे। उनके द्वारा पूर्व जन्म में किए गए कर्मों एवं स्मृति के फल में कोई फर्क नहीं पड़ता है। जैसे पहले उनकी स्मृति और कर्म फल के अनुसार प्रवृति, स्मृति और संस्कार का प्रभाव होता था वैसा ही प्रत्येक वर्तमान स्थिति में होगा।

 

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: जातिदेशकालव्यवहितानामप्यानन्तर्यं‌ ‌स्मृतिसंस्कारयोरेकरूपत्वात्‌

 

संस्कारों में वृत्ति रूप उफान जब आता है

उभरा रूप संस्कारों का यह व्युत्थान कहलाता है

इसके विपरीत निरोध संस्कार दबे चित्त में रहते हैं

ना कुछ हरकत हैं करते, बस चित पड़े रहते हैं

कभी व्युत्थान कभी निरोध भाव में

चित्त डोलता है इन दो नाव में

2 thoughts on “4.9”

  1. Mahesh Patel says:

    One query please. 4th word is Vyahitanam or Vyavahitanam.

    1. admin says:

      व्यवहितानाम् । we have corrected in the Sutra also। thanks for highlighting the same

      It was a typo error

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