Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.32 ||

‌‌ततः‌ ‌कृतार्थानां‌ ‌परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम्‌ ‌


पदच्छेद: ततः, कृतार्थानां, परिणाम-क्रम-समाप्ति:,गुणानाम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

तत:-इसके अनन्तर कृतार्थानाम्-अपना प्रयोजन सिद्ध कर चुके गुणानाम्-गुणों के परिणामक्रम-परिणाम क्रम की समाप्ति: -समाप्ति हो जाती है

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: धर्ममेघ समाधि के बाद अपने भोग  व अपवर्ग रूपी प्रयोजन को सिद्ध कर चुके गुणों का परिणाम क्रम भी समाप्त हो जाता है

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Yog Sutra 4.32

Explanation/Sutr Vyakhya

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धर्ममेघ समाधि की प्राप्ति के साथ और क्या क्या होता है इस बारे में। महर्षि बता रहे हैं।

तीन गुणों अर्थात सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण का मुख्य कार्य है पुरुष अर्थात आत्मा को जीवन में भोग उपलब्ध कराना और मुक्ति दिलाना।

योगी को धर्ममेघ समाधि की स्थिति दिलाकर ये तीन गुण कृत कृत्य हो जाते हैं। इस कारण से अब इन तीन गुणों में किसी भी प्रकार की कोई गति नहीं होती। गति या विचलन नहीं होने से इनमें किसी भी प्रकार का कोई कार्य आगे नहीं बनता है। इनके क्रम और परिणाम दोनों की समाप्ति हो जाती है।

जब इन तीन गुणों में से किसी एक भी गुण में कोई उभार आता है या कोई गुण गौण हो जाता है तब एक सिलसिला शुरू होने लग जाता है। इस सिलसिले को हो महर्षि यहां क्रम से कह रहे हैं और क्रम बनते बनते परिणाम में परिवर्तित हो जाता है। क्रम और परिणाम को और अधिक अच्छे से महर्षि अगले सूत्र के माध्यम से अलग से भी समझाएंगे।

यहां सूत्र में महर्षि तीन गुणों के क्रम और उनके परिणाम की समाप्ति होने की बात कर रहे हैं। और यह सबकुछ होता है धर्ममेघ समाधि लगने के उपरांत।

साथ ही तीन गुणों अपने कार्यों से उपराम होकर कृतार्थ हो जाते हैं अर्थात अब इन गुणों में किसी भी प्रकार से कोई हरकत या विचलन नहीं होती है। ये शांत हो जाते हैं और योगी गुणातीत हो जाता है।

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