Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.23 ||

‌‌द्रष्टृदृश्योपरक्तं‌ ‌चित्तं‌ ‌सर्वार्थम्‌ ‌


पदच्छेद: ‌द्रष्टृ-दृश्य-उपरक्तम्, चित्तं-सर्व-अर्थम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • द्रष्टृ- देखने वाला अर्थात जीवात्मा
  • दृश्य- विषय से
  • उपरक्तम् - सम्बन्ध या संलिप्त होने से
  • चित्तं- चित्त का
  • सर्व- सभी
  • अर्थम्- प्रयोजन (भोग एवं अपवर्ग) सिद्ध कराने वाला होता है

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: चित्त का आत्मा -दृष्टा व विषय के साथ सम्बन्ध हो जाने से वह सभी प्रयोजन (भोग एवं अपवर्ग) कि सिद्धि करने वाला हो जाता है ।

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Yog Sutra 4.23
Hindi Explanation
   

Explanation/Sutr Vyakhya

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प्रस्तुत सूत्र में महर्षि कह रहे हैं कि चित्त कभी तो आत्मा के लिए विषय बन जाता है और कभी बाहर के विषयों को जनाने वाला बन जाता है।

 

इस प्रकार वह विषयों से एवं आत्मा दोनों से रंगा हुआ होता है।

 

जब वह बाह्य विषयों से संबद्ध होता है तो अचेतन सा भासता है और जब आत्मा से संपर्क करता है तो चेतन जैसा भी भासने लगता है।

 

चित्त को एक दर्पण की भांति मान सकते हैं। जितना दर्पण साफ होता है उतना ही साफ प्रतिबिंब बनता है और उतना ही स्पष्ट वह दिखाई देता है।

 

जब इंद्रियों के माध्यम से बाहर की वस्तुओं के प्रतिबिंब चित्त पर पड़ते हैं तो आत्मा चित्त के साथ जब संपर्क करती है तो उसे चित्त पर पड़े प्रतिबिंब का ज्ञान हो जाता है। उसी प्रकार आत्मा के स्वरूप का प्रतिबिंब भी जब चित्त पर पड़ता है तब भी आत्मा को उसके स्वरूप का ज्ञान होता है।

 

अर्थात चाहे बाहर का ज्ञान करना हो या स्वयं आत्मा को भी अपने स्वरूप का अनुभव करना हो उसके लिए साफ अंतःकरण या चित्त होना आवश्यक है।

 

इसलिए चित्त एक दर्पण की भांति है। चित्त रूपी दर्पण का अपना भी एक स्वरूप है लेकिन जैसा जैसा उसके सामने प्रतिबिंब बनता जायेगा वैसा वो ज्ञान आत्मा को कराता जायेगा।

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