![](https://patanjaliyogasutra.in/wp-content/uploads/2019/08/patanjali-logo-1.png)
![](https://patanjaliyogasutra.in/wp-content/themes/yogsutra/images/logo.png)
![](https://patanjaliyogasutra.in/wp-content/uploads/2019/08/banner-maharshi-patanjali.png)
पूर्व सूत्र में महर्षि ने बताया कि काल को अपेक्षा से भी पदार्थ नष्ट नहीं होते हैं अपितु वे गुण रूप में कभी तो प्रकट और कभी अप्रकट रहते हैं।
अब चूंकि यहां गुणों के ऊपर चर्चा हो रही थी तो गुणों के परस्पर विरोधी स्वभाव के होने के कारण पदार्थ में भी अलग अलग क्रियाएं देखने को मिलती हैं। सत्व गुण का कार्य है प्रकाश करना,रजोगुण का कार्य है पदार्थ में क्रिया करना और तमोगुण का कार्य है इसे स्थित रखना। इस प्रकार ये परस्पर विरोधी स्वभाव के होने से जब पदार्थ में अलग अलग परिवर्तन होंगे तो या ये तीनों गुण परस्पर मिलकर कुछ बनाएंगे तो क्या वहां पर विभिन्न पदार्थ बनेंगे या उसे भी एक ही पदार्थ कहा जायेगा? यह चर्चा चल रही है।
जैसे : हम मंदिर में पूजा करते हैं तो रूई, दिया, तेल या घी और अग्नि को परस्पर इस प्रकार व्यवस्थित करके अग्नि से प्रज्वलित करते हैं कि ज्योति रूप में सतत प्रकाश उत्पन्न होने लगता है। अभी तक तो रूई, दिया, तेल, घी और अग्नि ये सब अलग अलग पदार्थ थे और सबके अलग अलग नाम भी थे। लेकिन इन सबको एक क्रम से, व्यवस्थित तरीके से जब मिलाया गया तो एक नए पदार्थ की उत्पत्ति हो गई, जिसे हम ज्योति कह रहे हैं। लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं कि जो प्रकाश उत्पन्न हो गया उसके पांच नाम रख दें। यह अब एक स्वतंत्र पदार्थ के रूप में जाना जाता है। इसलिए परिणाम के एक हो जाने से वस्तु भी एक हो जाती है।
तात्विक दृष्टि से सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण ये तीन की संख्या है लेकिन जब ये मिलकर किसी पदार्थ की रचना करते हैं तो वह वस्तु भी एक अलग सत्ता बन जाती है। उसे तीन नाम या तीन अलग अलग सत्ता के रूप में नहीं जाना जाता है।
यहां पर महर्षि द्वारा या सूत्र इसलिए भी कहा है ताकि इस संसार की जो व्यावहारिकता जो है उसे हम समझ सकें और साथ ही उसके भीतर के तत्त्व को भी साथ साथ पहचान सकें।