Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.25 ||

‌‌विशेषदर्शिन‌ ‌आत्मभावभावनाविनिवृत्तिः‌ ‌


पदच्छेद: विशेषदर्शिन:,आत्म-भाव-भावना, विनिवृत्ति:॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • विशेषदर्शिन:- विशेष ज्ञान रखने वाले योगियों में
  • आत्मभाव भावना- स्वयं को जानने की इच्छा की
  • विनिवृत्ति: - समाप्ति हो जाती है

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: ऐसे योगी जिन्हें विशेष ज्ञान प्राप्त हो जाता है, उन्हें स्वयं को जानने की इच्छा की समाप्ति हो जाती है ।

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Yog Sutra 4.25

Explanation/Sutr Vyakhya

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चित्त से संबंधित सभी बिंदुओं के ऊपर वैज्ञानिक एवं विस्तृत चर्चा करके के उपरांत प्रस्तुत सूत्र में महर्षि विवेक ज्ञान के फल के विषय में बात कर रहे हैं।

 

योग साधना के पथ पर जब योगी बढ़ता जाता है और साथ ही जब पूर्व जन्मों की साधना के समाधि के संस्कार भी उदित होने लग जाते हैं तो योगी की अपने विषय में जानने की उत्सुकता या जिज्ञासा की भावना निवृत्त होने लगती है।

 

प्रारंभ में जब वह अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ता है तब साधक के मन में स्वयं के विषय में अनेक प्रश्न होते हैं जिसका उत्तर वह खोजना चाहता है। जैसे जैसे शास्त्रों के अध्ययन के साथ अपनी योग साधना को आगे बढ़ाता जाता है, वैसे वैसे उसके प्रश्न उत्तरित भी होते जाते हैं और समाप्त भी होते जाते हैं।

 

जब अंतिम विवेकज्ञान प्राप्त हो जाता है तब वह प्रश्नों से रहित हो जाता है। क्योंकि उसको स्वयं के विषय में एक शाश्वत ज्ञान प्राप्त हो जाता है जहां वह केवल आचरण के ऊपर स्थित हो जाता है।

 

वह यह जानता है कि क्या करना है? कैसे आचरण मार्ग पर पूर्णता प्राप्त करनी है और वह उसी साधना में संलग्न रहता है।

 

अतः महर्षि कहते हैं, यदि विवेकज्ञान प्राप्त हो जाता है तो योगी अपने विषय में उठने वाले सभी प्रश्नों से पार चला जाता है, फिर वह प्रश्नों से घिरा नहीं रहता है अपितु वह समाधान की दृष्टि से अपने योग के, समाधि के आचरण को पुष्ट करता चला जाता है।

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