Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.12 ||

अतीतानागतं‌ ‌स्वरूपतोऽस्त्यध्वभेदाद्धर्माणाम्‌ ‌


पदच्छेद: अतीत-अनागतम् , स्वरूपतः-अस्ति-अध्व-भेदात्-धर्माणाम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • धर्माणाम् -धर्मों का
  • अध्व - काल अर्थात समय के
  • भेदात्- भेद या अन्तर से
  • अतीत- भूतकाल अर्थात जो बीत चुका
  • अनागतम्- भविष्य अर्थात आने वाला समय में
  • स्वरूपत:- पदार्थ या वस्तुएँ अपने स्वरूप अर्थात कारण रूप में विद्यमान रहती हैं

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: पदार्थों के धर्मों में भेद होने से जिन पदार्थों का काल बीत चुका है और जिन पदार्थो का अभी समय नहीं आया है वे सभी पदार्थ स्वरुप से अस्तित्व में होते ही हैं ।

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Yog Sutra 4.12

Explanation/Sutr Vyakhya

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पूर्वोक्त सूत्र में महर्षि ने बताया कि किस प्रकार वासनाओं के चार मुख्य कारणों को यदि हटा दिया जाए तो अनादि प्रवाह से चली आ रही वासनाओं का भी अभाव किया जा सकता है।

वासनाएं हमारे कर्मों के संस्कार का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो कि हमारे आंतरिक जीवन से संबंध रखती हैं लेकिन क्या भौतिक या सांसारिक जीवन में जो भी पदार्थ या वस्तु हैं, उनके भी यदि मुख्य कारणों का उच्छेद कर दिया जाए तो क्या उन पदार्थों या वस्तुओं का भी नाश हो जाता है? ऐसा प्रश्न किसी ने किया।

 

ऐसे प्रश्न के उत्तर में महर्षि ने यह सूत्र कहा है।

 

वे कहते हैं कि पदार्थों या वस्तुओं की जो अपनी मुख्य विशेषता है जिसे शास्त्र की भाषा में धर्म कहा जाता है। पदार्थ या वस्तु को धर्मी कहते हैं। वह धर्म या विशेषता समय के साथ समाप्त नहीं होती है। फर्क इतना पड़ता है कि भूतकाल में वह धर्म या विशेषता होकर फिर नहीं व्यक्त नहीं होता और भविष्य काल में वह पुनः होने की संभावना से युक्त रहता है। बाकी वर्तमान में तो वह अभिव्यक्त रहता ही है।

 

जैसे कुम्हार आज एक मिट्टी का घड़ा बनाता है तो वह वर्तमान में अभिव्यक्त हो रहा है। लेकिन आज से पूर्व घड़ा नहीं था, केवल मिट्टी थी। यह घड़े का भूतकाल हो गया। अब आगे कुछ सालों बाद यह जो घड़ा बनाया है यह नहीं रहेगा अर्थात टूट जाएगा। तब पुनः मिट्टी शेष रह जायेगी। लेकिन भूतकाल और भविष्य दोनों कालों में मिट्टी शेष अवश्य बचती है जिसमें पुनः घड़े को बनाने का विशेष सामर्थ्य मौजूद रहता है।

 

अतः महर्षि कह रहे हैं कि कोई भी पदार्थ हो, वह समय (भूतकाल और भविष्य काल) की अपेक्षा से कभी समाप्त नहीं होता है क्योंकि वह अपने गुण रूप कारण से अस्तित्व में रहते हैं अर्थात नष्ट नहीं होते हैं।

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3 thoughts on “4.12”

  1. Garima Bohra says:

    It’s been a week there’s no updates sir, I’m just seeing this coming soon note, update the remaining sutras only vibhuti pada is left 🥲

  2. Garima Bohra says:

    Sorry kaivalya pada*

    1. admin says:

      We are updating Sutra explaination। most probably on daily basis।

      Vibhutipaad is already Done। alongwith sutras explaination, we are updating websites new look, hence you might feel a delay.

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