पूरे योग सूत्र में यह एकमात्र ऐसा सूत्र है जिसमें महर्षि पतंजलि स्वयं प्रश्न कर रहे हैं।
वे पहले तो सिद्धांत स्थापित करते हुए कहते हैं कि यह संसार या पदार्थ किसी एक चित्त के अधीन नहीं आते हैं। यह स्पष्ट करके वे पूछते हैं यदि कोई वस्तु या पदार्थ का उत्पत्ति कर्ता कोई एक चित्त होगा तो तब क्या होगा जब वह चित्त नहीं रहेगा? क्या चित्त के नहीं रहने से वह वस्तु या पदार्थ भी नहीं रहता है? लेकिन ऐसा तो देखने में नहीं आता है कि चित्त जब किसी अन्य वस्तु या पदार्थ पर केंद्रित होता है तो पहली वाली वस्तु जो थोड़ी देर पहले उसका विषय थी, वह अदृश्य हो जाती है।
यह कहना और मानना कि चित्त ही वस्तुओं के निर्माण में कारण है, यह अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक है।
मान लीजिए, हमारे चित्त ने आंख रूपी ज्ञानेंद्रिय के माध्यम से एक पेड़ देखा और वह पेड़ अस्तित्व में आ गया। अगले ही क्षण एक खेत देखा तो फिर वह खेत अस्तित्व में आ गया। यदि चित्त ही सब वस्तुओं का उत्पत्ति कर्ता मान लिया जाय तो फिर पहले वाला पेड़ तो दिखना बंद हो जाना चाहिए। लेकिन पेड़ तो बना रहता है और दूसरों को भी दिखता रहता है। इसलिए जो संसार को भौतिक रूप से मिथ्या मानते हैं, क्षणभंगुर मानते हैं या स्वप्न मानते हैं वह गलत है।
हां भाव के स्तर पर कि यह संसार नश्वर है, हमारे विराट लक्ष्य के मुकाबले क्षणभंगुर है, स्वप्न है, ऐसा मानकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति करने में कोई समस्या नहीं है।
लेकिन यह सबकुछ मिथ्या है, क्षणभंगुर है ऐसा सोचकर सब प्रकार की सेवाओं से मुक्त हो जाना गलत है।
क्योंकि प्रकृति की अपनी स्वतंत्र सत्ता है, उसका अपना अलग विस्तार है। पदार्थ अपने मूल तत्त्वों की अपेक्षा से अस्तित्व में आते हैं न कि पुरुष अथवा किसी चित्त की अपेक्षा से उनकी सत्ता बनती या मिटती है। यदि हम किसी घड़े या पेड़ को नष्ट भी कर दें तो जिन सूक्ष्म तत्त्वों से इनका निर्माण हुआ था उन्हें हम नष्ट नहीं कर सकते हैं क्योंकि प्रकृति के मूल तत्त्वों को नष्ट नहीं किया जा सकता है। ये प्रवाह से अनादि हैं।
अतः महर्षि इस समय प्रचलित बहुत सारे ऐसे मतों का खण्डन कर रहे हैं को संसार को, वस्तुओं या पदार्थों को स्वप्न के समान मानते थे और कहते थे कि यह संसार हमारी कल्पना का प्रतिबिंब है। जैसे सपने से जागने के बाद सारा मायावी संसार एक झटके में गायब हो जाता है वैसे ही यह जो संसार हमें दिख रहा है एक दिन आत्मज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद गायब हो जायेगा। यह विवेचना भौतिक स्तर पर तो सर्वथा अमान्य है हां अध्यात्म के स्तर पर वैराग्य के लिए यह सोचकर कि यह सब संसार अनित्य है, नश्वर है अतः यहां फंसना नहीं है अपितु विवेकपूर्वक कर्म करते हुए अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को पूरा करना है। ऐसा सोचकर आगे बढ़ा जा सकता है।