प्रस्तुत सूत्र में महर्षि चित्त किससे बनता है उसके विषय में बता रहे हैं। चित्त जिसे हम सामान्य भाषा में मन भी कहते हैं।
महर्षि कहते हैं कि चित्त या मन अस्मिता नामक तत्त्व से बना है। अस्मिता का दुसरा नाम अहंकार भी कहा जाता है।
सांख्य दर्शन में 25 तत्त्वों की उत्पत्ति संबंधी विवेचना करते समय एक पूरी गणना की गई है कि किस से क्या बनता है। सत्त्व, रजस एवं तमस की साम्यावस्था को प्रकृति कहा गया है। सत्त्व, रजस और तमस से महत्तत्व बनता है। महत्तत्व को बुद्धि भी कहते हैं। फिर महत्तत्व अर्थात बुद्धि तत्व से अस्मिता का निर्माण होता है। फिर अस्मिता या अहंकार तत्त्व से चित्त या मन का निर्माण होता है।
इस प्रकार चित्त के बनने का मूल कारण अस्मिता या अहंकार नामक तत्त्व है।
किसी तत्त्व से जब किसी अन्य तत्त्व का निर्माण होता है तो जिससे बनता है उसे शास्त्र की भाषा में ” उपादान” कारण कहते हैं। अतः जहां जहां शास्त्रों में उपादान कारण लिखा हो तो समझना चाहिए कि जिसे उपादान कारण कहा जा रहा है उससे किसी तत्त्व का निर्माण हुआ है।
महर्षि ने यहां चित्त शब्द का बहुवचन में प्रयोग किया है। जिसका अर्थ निकलता है कि चित्तों का निर्माण अस्मिता तत्त्व से होता है। लेकिन चित्त अनेक होते हों यह समझ में नहीं आता है। तब महर्षि यहां चित्तानि ऐसा शब्द क्यों प्रयोग कर रहे हैं? यह प्रश्न सबके मन में उठता है।
एक बात तो निश्चित है कि चित्त अनेक नहीं होते हैं क्योंकि इसके अगले सूत्र में महर्षि चित्त के एक ही होने की पुष्टि भी करते हैं। शायद चित्त के अनेकत्व के विषय में उठ रही शंकाओं के समाधान की दृष्टि से भी वह सूत्र लिखा हो।
“प्रवृत्तिभेदे प्रयोजकं चित्तमेकमनेकेषाम् ।। 5 ।। ”
इस सूत्र में महर्षि स्पष्ट कह रहे हैं कि चित्त में प्रवृति भेद के आधार पर चित्त में विभिन्न क्रियाकलापों या व्यापार को चलाने वाला वह चित्त एक ही प्रकार का है।
यह तो स्पष्ट हो गया कि चित्त अनेक प्रकार का ना होकर केवल एक ही प्रकार का होता है लेकिन चित्त में अनेक प्रकार के व्यापार अर्थात प्रवृत्तियों का संचालन होता है जिसके आधार पर महर्षि ने चित्त को बहुवचन में कह दिया है। और इस प्रकार के बहुविध व्यापारों वाले चित्त का निर्माण अस्मिता या अहंकार नामक तत्त्व से होता है, यह स्पष्ट हो जाता है।
सूत्र: निर्माणचित्तान्यस्मितामात्रात्
आओ समझें चित्त कैसे बनता है?
वह तत्त्व विशेष क्या? क्या उसकी गुणवत्ता है?
बुद्धि बनी है तीन गुणों से
फिर अंत में हुई लीन गुणों से
बुद्धि से फिर अहंकार बना है
समझो चित्त उसी से सना है
प्रकृति का उत्पाद अहंकार है जो
चित्तों के बनने का आधार है जो
महत्तत्व से अहंकार बना है
उसे ही अस्मिता नाम कहा है
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