प्रस्तुत सूत्र में महर्षि धर्ममेघ समाधि के फल के बारे में बता रहे हैं। योग में किसी भी अवस्था की प्राप्ति के बाद योगी के शेष अंतराओं की समाप्ति का फल मिलता है। यहां भी धर्ममेघ समाधि के फलस्वरूप पूर्व जन्म के बचे हुए क्लेशों के नाश का फल योगी को मिल जाता है।
धर्ममेघ समाधि के बाद योगी के जीवन में सभी क्लेश चाहे इस जन्म के हों या पिछले अनेकों जन्म के हों, वे सभी पूरी तरह से दघबीज हो जाते हैं और योगी का जीवन सम्पूर्ण रूप से कैवल्य के अभिमुख हो जाता है।
अब योगी के जीवन में न तो क्लेशों( अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश) के लिए कोई जगह शेष रहती है और न ही योग की अन्य कोई बाधा। योगी का जीवन पूर्ण रूप से गुणातीत हो जाता है जहां पर सब क्लिष्ट और अकलिष्ट विचार रूपी तरंगों से उसका जीवन पुनः तरंगित नहीं होता है। अपितु वह अपने नित्य शुद्ध, बुद्ध और मुक्त स्वभाव में प्रतिष्ठित होने लगता है।