Chapter 4 : Kaivalya Pada
|| 4.17 ||

‌‌तदुपरागापेक्षित्वाच्चित्तस्य‌ ‌वस्तु‌ ‌ज्ञाताज्ञातम्‌ ‌


पदच्छेद: तद्-उपराग-अपेक्षित्वात्-चित्तस्य, वस्तु, ज्ञात-अज्ञातम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तद्- वस्तु
  • उपराग- उपराग के
  • अपेक्षित्वात्- अपेक्षा से
  • चित्तस्य- चित्त को
  • वस्तु- वस्तु
  • ज्ञात- अज्ञातम्- का ज्ञान होता है या ज्ञान नहीं होता है

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: चित्त को वस्तु का ज्ञान होना एवं न होना वस्तु के साथ उपराग की अपेक्षा से होता है ।

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Yog Sutra 4.17

    Explanation/Sutr Vyakhya

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    • Yog Kavya
    • यह स्पष्ट करने के बाद कि जड़ पदार्थों को सत्ता अलग है। वे प्रकृति की अपनी सृजन व्यवस्था के साथ उत्पन्न होते हैं और उसी में लीन हो जाते हैं। प्रकृति से भिन्न चेतन का उनकी उत्पत्ति में कोई भी कारण नहीं हो सकता है।इसी बात को स्पष्ट करते हुए जब महर्षि ने प्रश्न किया था कि चित्त के नहीं रहने पर वस्तु या पदार्थ के अस्तित्व का क्या होगा। उसमें से एक जिज्ञासा उठी कि यदि चित्त वस्तुओं या पदार्थों का उत्पत्ति कर्ता नहीं है तब क्या स्थिति बनती है?

      महर्षि कह रहे हैं कि चित्त हमारी इंद्रियों के साथ संयोग करके वस्तुओं का ज्ञान चेतन पुरुष को कराता है। जब चित्त आंख के माध्यम से किसी वस्तु से संपर्क साधता है तब चित्त पर इस वस्तु का एक प्रतिबिंब पड़ता है, जिससे वह वस्तु चेतन को ज्ञात हो जाती है। और जिस वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ से आंख के माध्यम से संयोग नहीं होता, चाहे कोई भी कारण हो, वह वस्तु चित्त की दृष्टि से अज्ञात रहती है।

      लेकिन ऐसा नहीं है कि यदि चित्त का आंख के माध्यम से संयोग नहीं हुआ है तो दूर स्थिति उस वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का कोई अस्तित्व नहीं है। बात सिर्फ इतनी सी है कि उस वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का चित्त के ऊपर प्रतिबिंब न बनने से वह चित्त के लिए अज्ञात रहेगी।

      इस सूत्र में महर्षि चित्त का बाहरी पदार्थों के साथ संयोग होकर ज्ञान हो जाने को ज्ञात और संयोग न होकर ज्ञान न होने को अज्ञात कह रहे हैं।

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