अब हम महर्षि पतंजलि विरचित योग दर्शन या योग सूत्र के अंतिम पाद कैवल्य के अंतिम सूत्र ( 4.34) के ऊपर चर्चा करेंगे।
इस सूत्र में जीवन के अंतिम एवं सर्वोच्च लक्ष्य कैवल्य के स्वरूप की चर्चा की गई है। मनुष्य के जीवन ने पुरुषार्थ चतुष्ट्य की बात आती है। अर्थात सब प्राणियों से अतिरिक्त मनुष्य जीवन की यात्रा धर्म, अर्थ, काम से गुजरती हुई मोक्ष तक पहुंचती है। मनुष्य का जन्म तो सबको मिल जाता है लेकिन वस्तुत: वह अपनी यात्रा धर्म से शुरू हो नहीं कर पाता है फिर मोक्ष तक पहुंचना तो असंभव ही है।
सामान्य मनुष्यों का जीवन धर्म और मोक्ष से अछूता केवल अज्ञान जनित कामनाओं और अर्थ के बीच झूलता रहता है। उसे न तो धर्म की खबर होती है और न ही जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की।
जब मनुष्य, योगी के रूप में अपनी योग साधना के बल पर सब क्लेशों और सकाम कर्मों को नष्ट करता हुआ, ज्ञान को ढकने वाले आवरणों एवं अशुद्धियों को हटा लेता है तब वह गुणातीत हुआ मोक्ष या कैवल्य को प्राप्त कर लेता है। यह कैवल्य या मोक्ष की अवस्था का स्वरूप कैसा होता है यह इस सूत्र के माध्यम से महर्षि हम सबको बता रहे हैं।
सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण के दो ही मुख्य काम है। जीवात्मा के लिए जीवन में सब सुख, सुविधाओं रूपी संसाधनों की पूर्ति कराते हुए अंततोगत्वा उसे अपवर्ग अर्थात मुक्ति तक पहुंचाना।
जब ये तीन गुण अपने इस प्रयोजन से मुक्त हो जाते हैं अर्थात पुरुष को भोग उपलब्ध कराते हुए कैवल्य तक पहुंचा देते हैं तो इनका कार्य यहीं पर समाप्त हो जाता है। इसी स्थिति को कैवल्य के नाम से कहा जाता है। अर्थात प्रकृति और पुरुष का संयोग यहां पर आकर टूट जाता है और पुरुष अकेला हो जाता है या केवल पुरुष रह जाता है। प्रकृति एवं उनके तीन गुणों से निर्मित सबकुछ अपने मूल उद्गम को वापस लौट जाते हैं। इस प्रकार पुरुष की केवल बचे रहने की अवस्था को कैवल्य कहते हैं।
दूसरे शब्दों को एवं अर्थ में महर्षि कहते हैं कि आत्मा के अपने शुद्धत्म स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाने को कैवल्य कहते हैं।
योग सूत्र के तीसरे सूत्र में इसी बात को कहा गया था। कि जब योगी के चित्त की वृत्तियों का निरोध हो जाता है तब दृष्टा अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो जाता है। उसी स्वरूप में स्थिति को यहां पर महर्षि मोक्ष या कैवल्य के नाम से कह रहे हैं।
यह एक ऐसी स्थिति है जहां से फिर योगी का पुनः जन्म नहीं होता अपितु वह अपने स्वरूप को पाकर फिर और कुछ पाने के इच्छा से सर्वथा रहित हो जाता है। जीवात्मा का जितना भी जीवन शेष होता है उसे विदेह होकर जीता है और निष्काम कर्म करता हुआ परमात्मा के आनंद में मग्न हो जाता है। क्योंकि जन्म और मरण के कारण तीन गुण अब अपने कारण में लीन हो चुके होते हैं अतः जन्म मरण का कोई कारण शेष नहीं रहने से योगी का पुनः जन्म नहीं होता।
इति कहकर महर्षि पतंजलि योग सूत्र की संपूर्णता की घोषणा करते हैं और इस प्रकार योग दर्शन यहां पूर्ण हो जाता है।
ॐ
Priye bhaiya, bohot bohot dhanyawaad aapka 🙏
Aaj he pura padh paaye.
Hum bhakti marg pe hai aur Narayan kripa se saadhna ke liye Gangotri ja rahe hain.
Patanjali yoggsutra padh ke aur manan chintan se humein bohot bal mila. Ishwar aapko aur bhi sunder kaaryo ka madhyam banaye.
Hari Om 🧡
आपकी साधना निरंतर आगे बढे नारायण जी, खूब सारी शुभकामनायें
Greetings!!!!!
Patanjali Yogsutra are giving the guideline how we have to live, very deep knowledge of life and its journey with Parakariti. what we should and what we should not do. I suppose every one should read this to make their life better.
I am very thankful to all who have made this information available for us.
Thanks & Regards,
Narender Sharma
Can you please provide the explanation as well
thank you so much for this informative knowledge.
धन्यवाद अदिति जी , happy reading
Thankyou so much 🙂
Thank you. Learned lots of things.