समय के सबके छोटे अंश या इकाई या भाग को क्षण या पल कहा जाता है। जैसे पदार्थ की सबसे छोटी इकाई परमाणु है उसी प्रकार समय की सबसे अंतिम इकाई पल या क्षण है। जिसे और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकता है। पल में पल जुड़ते चले जाने से ही समय निर्मित होता है। मिनट, घंटा, प्रहर, सांय, दिन, रात, सप्ताह, पक्ष, मास, उत्तरायण, दक्षिणायन और वर्ष, दशक, शताब्दी, युग, मन्वंतर, कल्प आदि इस प्रकार समय की यात्रा चलती जाती है। समय में ही सबकुछ घटित होता है। समय या काल ही ईश्वर के सदृश प्रत्येक घटना का एकमात्र साक्षी रहता है।
सबकुछ समय में घटित होता है इस बात को यूं भी कह सकते हैं कि सबकुछ पल या क्षण में घटित होता है। लेकिन घटना का ज्ञान हमें एक क्षण में या पल में नहीं होता है। बहुत सारे पलों या क्षणों के परस्पर सहयोग से कुछ काल में घटना का ज्ञान होता है।
जैसे प्रत्येक क्षण में एक नवजात शिशु के शरीर, मन, बुद्धि और हृदय में परिवर्तन हो रहा है लेकिन उसका भान हमें हर क्षण नहीं होता है। 6 महीने या वर्ष भर में जब वह चलने लगता है, बोलने लगता है तब हमें ज्ञान होता है कि यह चलने लगा है, शिशु बोलने लगा है।
पूर्व सूत्र में जिस क्रम और परिणाम की बात आई थी उसे ही यहां समझाने की दृष्टि भर से यह सूत्र कहा गया है। क्योंकि योगदर्शन अब अपनी संपूर्णता की ओर बढ़ रहा है तो कुछ ऐसा शेष न रह जाए जिसके विषय में शंका या जिज्ञासा उठे तो सभी शंकाओं और जिज्ञासाओं को भी शांत करते हुए पाद की संपूर्णता की ओर आगे बढ़ रहे हैं महर्षि।
तीन गुणों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन क्रमों के परस्पर सहयोग से और काल की अपेक्षा से परिणाम कहलाता है।
अतः इस सूत्र के माध्यम से महर्षि ने योग सूत्रों की व्याख्या की श्रृंखला में अंतिम जिज्ञासा का भी समाधान कर दिया है।