मन को शहर, निर्मल एवं स्थिर करने के उपरोक्त बतलाए गए उपायों, विधियों का अनुष्ठान करने से सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा बड़े से बड़े या सबसे बढ़कर महान पदार्थ भी जान लिया जाता है अर्थात् वश में कर लिया जाता है।
चित्त को एकाग्र करने के उपायों का पालन करने से फल रूप में साधक को मन की शांति, निर्मलता, एवं स्थिरता के साथ अन्य क्या फल प्राप्त होते हैं इस बारे में महर्षि बता रहे हैं।
किसी भी अनुष्ठान,साधना एवं उपायों के फल दो प्रकार से देखा जाता है।
तात्कालिक फल-लाभ
दीर्घकालिक फल-लाभ
तात्कालिक फल तो मन की स्थिरता, मन का शांति को प्राप्त होना एवं मन की निर्मलता है।
दीर्घकालिक फल, मन के शांत होने एवं निर्मल होने से मिलता है जिससे वह विशेष सिद्धियों से युक्त हो जाता है।
इस प्रकार निर्मल मन से युक्त होकर साधक अपने जानने की परिधि में सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों को भी जानने लग जाता है और उनपर नियंत्रण तक करने में सक्षम हो जाता है। जो सबसे बढ़कर महान पदार्थ हैं उनपर भी उसका वशीकार सम्भव हो जाता है।
जब एक साधक का चित्त बिना किसी बाधा के सूक्ष्मतम अर्थात् परमाणु में एवं बृहत विषय “आकाश” स्थिर होने लग जाता है तब ऐसे चित्त को परम वशीकार प्राप्त हो जाता है।
सूत्र: परमाणु परममहत्त्वान्तोऽस्य वशीकारः
मन के निर्मल, स्थिर होने पर
सब अवसाद, अप्रसन्नता खोने पर
छोटे बड़े सभी पदार्थों पर
वश हो जाता सब अर्थों पर
इसलिए मन स्थिर करना तुम जानो
गूढ़ अर्थ जो कहे, उन्हें पहचानो