Chapter 1 : Samadhi Pada
|| 1.44 ||

एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता


पदच्छेद: एतया , एव , सविचारा , निर्विचारा , च , सूक्ष्मविषया , व्याख्याता ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • एतया - इन अर्थात् पूवोक्त सवितर्क और निर्वितर्क समाधियों (के वर्णन) से
  • एव - ही
  • सूक्ष्म - सूक्ष्म
  • विषया - विषयों (में की जानेवाली)
  • सविचारा - सविचार (और)
  • निर्विचारा - निर्विचार समाधि का
  • च - भी
  • व्याख्याता - वर्णन कर दिया गया है ।

English

  • etaya - by this
  • eva - also
  • savichara - savichara
  • nirvichara - nirvichara
  • cha - and
  • sookshma - subtle
  • vishaya -object
  • vyakhyata - are explained

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: इन अर्थात् पूवोक्त सवितर्क और निर्वितर्क समाधियों के वर्णन से ही सूक्ष्म विषयों में की जानेवाली सविचार और निर्विचार समाधि का भी वर्णन कर दिया गया है ।

Sanskrit: 

English: By this process (the concentration), savichara samadhi and nirvichara samadhi, whose objects are finer, are also explained.

French: À travers ce processus (concentration), samadhi savichara et nirvichara samadhi, dont les objets sont plus fins, sont également expliqués.

German: Diese beiden Erkenntniszustände heißen Savicārā- bzw. Nirvicārā-Samāpatti, wenn es sich um subtile Objekte handelt.

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Yog Sutra 1.44
Explanation 1.44
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Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • German
  • Yog Kavya

उपरोक्त सवितर्क समापत्ति एवं निर्वितर्क समापत्ति बतलाने एवं व्याख्या करने से सम्प्रज्ञात समाधि के अन्य दो प्रकार अर्थात् निर्विचार एवं सविचार समापत्ति भी सिद्ध समझनी चाहिए। जिस प्रकार से ऊपर के दो सूत्रों में हमने सवितर्क और निर्वितर्क को समझाया है उसी के आधार पर क्रमश: अर्थात् सवितर्क की तरह सविचार समापत्ति को और निर्वितर्क समापत्ति की तरह निर्विचार को समझ लेना चाहिए। सवितर्क और निर्वितर्क समापत्ति में स्थूल भूत एकाग्रता के विषय होते हैं जबकि सविचार एवं निर्विचार समापत्ति में सूक्ष्म भूत विषय बनते हैं।

स्थूलभूत या भौतिक पदार्थो में जिस प्रकार शब्द, अर्थ एवं ज्ञान इन तीन के पृथक-पृथक होने पर भी जो मिली हुई सवितर्क समापत्ति होती है, उसी प्रकार सूक्ष्मभूत परमाणुओं में शब्द, अर्थ एवं ज्ञान से मिश्रित सविचार समापत्ति होती है। सामान्य काल में तो शब्द,अर्थ एवं ज्ञान हमको पृथक-पृथक अनुभव में नहीं आते हैं लेकिन योगमार्ग पर आगे बढ़ चुके योगी, इन सूक्ष्म परमाणुओं को भी प्रथम तो शब्द, अर्थ एवं ज्ञान के विकल्प से अलग अलग देखना प्रांरम्भ कर देते हैं फिर धीरे धीरे शब्द और ज्ञान से शून्य हुई सी केवल चित्तवृत्ति योगी को केवल अर्थ मात्र का भान कराती है।

 

स्थूलभूत:

  1. पृथ्वी
  2. जल
  3. अग्नि
  4. वायु
  5. आकाश

 

पञ्च तन्मात्राएँ:

  1. गन्ध तन्मात्रा
  2. रस तन्मात्रा
  3. रूप तन्मात्रा
  4. स्पर्श तन्मात्रा
  5. शब्द तन्मात्रा

 

इस प्रकार सम्प्रज्ञात समाधि के चार भेदों की व्याख्या यहां पर समाप्त हुई।

 

स्थूलभूत एवं सूक्ष्मभूत की बात यहाँ उपरोक्त तीन सूत्रों में हुई तो शिष्यों ने महर्षि से जिज्ञासा की- आप जो सूक्ष्मभूत की बात यहां कर रहे हैं, उसकी सीमा कहाँ तक है? योगी कितनी सूक्ष्मता में जाकर निर्विचार या सविचार समापत्ति प्राप्त कर सकता है?

 

उसके उत्तर में ही अग्रिम सूत्र है।

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One thought on “1.44”

  1. अन्तिम आर्य योगाभ्यासी says:

    आगे के सूत्रों की भी व्याख्या यथा शीघ्र उपलब्ध करवाने की कृपा करें। ताकि सभी साधक उससे लांभांवित हो सके।

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