प्रमाणविपर्ययविकल्प निद्रास्मृतय:
किलष्ट और अक्लिष्ट भेद से वृत्तियां पांच प्रकार की होती हैं।
क्या यही 5 वृत्तियाँ हैं या इनके अतिरिक्त भी वृत्तियाँ हैं? ऐसा प्रश्न मन में उठ सकता है। मनन करने पर लगता है कि महर्षि ने सब प्रकार से विचार करके ही मूलभूत 5 प्रकार की वृत्तियों को यहां पर कहा है। पांच वृत्तियों में ही अन्य वृत्तियों का समावेश हो जाता है और इन पांचों प्रकार की वृत्तियों के क्लिष्ट रूप के रुकने से अन्य सभी वृत्तियों के क्लिष्ट रूपों का भी निरोध हो जाता है।
योग दर्शन में एक भी शब्द अतिरिक्त एवं अन्यथा नहीं कहा गया है और इस शास्त्र की सबसे बड़ी विशेषता है। केवल शब्द ही नहीं अपितु भाव भी अतिरिक्त या अन्यथा नहीं है। महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन को एक विशुद्ध विज्ञान की दृष्टि से रचा है और इसकी पुष्टि पग पग पर शास्त्र में मिलती है।
वृत्तियों के सम्बन्ध में एक मूलभूत नियम समझ लेना अत्यावश्यक है। यदि इसे नहीं समझा गया तो योग मार्ग में प्रवृत्ति भी नहीं हो सकती, योग मार्ग पर यात्रा भी नहीं की जा सकती और गंतव्य तो फिर कहीं दिखाई भी नहीं देगा।
1-“जो वृत्ति साधक को स्वयं के स्वरूप एवं परमात्मा की ओर उन्मुख करती है, वह वृत्ति अक्लिष्ट है अर्थात उसे रोकना नहीं अपितु प्रयत्नपूर्वक बढ़ाना चाहिए।”
2-“जो वृत्ति साधक को स्वयं के स्वरूप एवं परमात्मा से विमुख करती हो, वह क्लिष्ट वृत्ति कहलाती है अर्थात ऐसी वृत्तियों को व्यवहारकाल में बलपूर्वक रोकने, नष्ट करने का निरंतर अभ्यास करना चाहिए।”
इससे यह स्पष्ट होता है कि सभी 5 प्रकार की मूलभूत वृत्तियों के सभी भेदों का निरोध आवश्यक नहीं है, क्योंकि जब तक हम गंतव्य (अंतिम लक्ष्य) तक नहीं पहुंचते हैं तब तक यात्रा तो करनी पड़ेगी और जीवन की इस यात्रा में बिना इन पांच प्रकार की मूलभूत वृत्तियों का सहारा लिए हम योग के मार्ग पर , भगवान के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं।
आगे के सूत्रों में क्रमश बताएंगे कि कैसे एक एक वृत्ति सुख दुख दोनों देने वाली होती है।
Five different types of vritties are –
The question here is whether these are the only vritties that exist or there are more vritties? After lot of contemplation it is realized that Maharshi has mentioned these five fundamental vritties after all considerations. Other vritties are included in these five vritties only. And by stopping the kalisht form of these vritties, the kalisht forms of other vritties also get blocked.
The biggest trait of Yogasutra is that there is no unnecessary word or feeling is used in it. Maharshi Patanjali has composed Yogasutra as pure science which gets verified at every step of Shastras.
It is essential to understand one basic principle regarding vritties. Without its understanding tendency (inclination), journey and the destination on the path of Yoga is not at all possible.
1- “The vritti that directs the practitioner towards his own self or towards divine is
Akalisht vritti and it needs to be encouraged than to be restrained”.
2- “The vritti that guides you against your own self or the divine is called Kalisht vritti and such a vritti should be forcefully restrained or stopped”.
Thus it is clear that all five types of basic vritties need not be restrained because journey of life will continue till we reach our destination and it is not possible to move forward on the path of Yoga and divinity without the help of these five basic vritties.
How the same vritti can cause suffering as well as happiness will be told in coming sections respectively.
सूत्र: प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः
प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और अंतिम स्मृति है
समग्र निरोध इन वृत्तियों का हो, यही योग की नीति है ।
अद्भुद , वृत्तियों के सम्बंध में जिस प्रकार से आप यहाँ खुलकर बता रहे है , वैसी व्याख्या , में नही समझता अन्यत्र कही और मिले , मेने तो नही पढ़ी कही , बहुत अच्छा लगा यह जानकर की योगाभ्यासी को प्रारम्भ में ही सभी वृत्तियों का निरोध आवश्यक नही है और इनके साथ भी योगमार्ग में आगे बढ़ा जा सकता है , क्योंकि योगाभ्यासी की ज्यादातर शक्ति यहीं खर्च होती रहती है और वह अधिकतर यहीं फंसा रहता है इसके अलावा आगे बढ़ने का अन्य कोई मार्ग भी तो नही है परन्तु यह जानकर अच्छा लगा कि ये वृत्तियों गंतव्य तक पहुंचने में सहायक भी हो सकती है। आगे जानना चाहूंगा कि किस प्रकार से इन वृत्तियों को भी साध्य तक पहुंचने में साधन की तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। सह्रदय आभार “पूज्य श्री”।
प्रमाण आदि पंच वृत्तियों पर विशद प्रकाश की महती आवश्यकता है।
नागेंद्र जी, अवश्य। अभी प्रारंभिक रूप से संक्षिप्त रखा गया है। विषाद व्याख्या अंत मे की जाएगी जब सभी सूत्रों की संक्षिप्त व्याखता हो जाएगी। उसे अलग से पूज्य स्वामी विदेह देव जी कर रज हैं। उनका निरंतर चिंतन युक्त व्याख्या का सौभाग्य हनन मिलता रहेगा
श्री पी जे शहर की लिखी हुई जेन योगा में जो लीकेज को रोकने की बात की गई है आई ,एम,और एस सेंटर पर वह प्रकारन्तर से वृत्तियों का निरोध ही है ऐसा करने से साधक के ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है और वह सर्टेन क्रिटिकल प्वाइंट की तरफ बढ़ता चला जाता है। जिज्ञासु पाठक पी जे शहर के जैन योगा को भी पढ़ सकते हैं। दरअसल इसी पुस्तक को पढ़ने के बाद पतंजलि योग सूत्र को जानने की इच्छा हुई और यहां पर इतने सुंदर से ढंग से इसकी व्याख्या की गई है कि मैं धन्य हो गया।
Ati Sunder va sansayrhit.