Chapter 1 : Samadhi Pada
|| 1.50 ||

तज्जः संस्कारोऽन्यसंस्कारप्रतिबन्धी


पदच्छेद: तत्-जः , संस्कार: , अन्य , संस्कार , प्रतिबन्धी॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तत्-जः - उस (ऋतंभरा-प्रज्ञा) से उत्पन्न होने वाला
  • संस्कार - संस्कार
  • अन्य - दूसरे
  • संस्कार - संस्कारों (को)
  • प्रतिबन्धी - रोकने वाला (होता है) ।

English

  • tajjah - producing from that
  • sanskarah - deep impression
  • anya - of other
  • sanskara - deep impression
  • pratibandhi - instructing.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उस (ऋतंभरा-प्रज्ञा) से उत्पन्न होने वाला संस्कार दूसरे संस्कारों को रोकने वाला होता है ।

Sanskrit: 

English: The impression produced from this Samadhi obstructs all other impression.

French: L'impression produite par ce Samadhi obstrue toute autre impression.

German: Die Prägung solcher Erkenntnisse löst die Neigung in uns auf, die sich aus Unkenntnis und fehlerhaften Erkenntnissen entwickelt haben.

Audio

Yog Sutra 1.50
Explanation 1.50
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Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

पूर्व के दो सूत्रों में महर्षि ने ऋतम्भरा प्रज्ञा के विषय में विस्तृत रूप से बताया। ऋतम्भरा प्रज्ञा का स्वरूप क्या है और इसके सामान्य रूप से क्या लाभ योगी को प्राप्त होते हैं, इन विषयों पर चर्चा की।

 

अब प्रस्तुत सूत्र के माध्यम से समाधिलाभ हेतु ऋतम्भरा प्रज्ञा किस प्रकार सहयोगी होती है उसके विषय में बता रहे हैं।

 

ऋतम्भरा प्रज्ञा के उदय होने पर योगी के भीतर अदम्य साहस और आत्मबल आ जाता है। योगी के भीतर ऐसे संस्कार जन्म लेने लग जाते हैं जो योगी को आत्मअनुशासन की ओर ले जाते हैं और संचित बुरे संस्कारों को क्रियात्मक रूप में आने से रोकने लग जाते हैं। बुरे संस्कारों, आदतों या योग की बाधाओं का पहले सहज प्रवाह था वह बाधित होने लग जाता है। योगी के भीतर आत्मशक्ति का जागरण होने लग जाता है और सत्व को प्रबलता से वह दृष्टा भाव में प्रतिष्ठित होकर बलपूर्वक क्लिष्ट वृत्तियों, बुरी आदतों, दोषों या यूं कहें बुरे संस्कारों को रोकने या तिरोहित करने में सक्षम हो जाता है। यहां से उसके जीवन में असली लड़ाई प्रांरम्भ हो जाती है और वह बुरे संस्कारों पर विजय पाना प्रांरम्भ कर देता है।

 

ऋतम्भरा प्रज्ञा से पूरित होने के बाद, समझ और साहस के बल पर योगी बुरे संस्कारों को खत्म कर देता है और केवल ऋतम्भरा प्रज्ञा से युक्त रहता है। स्वतः स्फूर्त सत्त्व चेतना से विचरण करता है।

 

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: तज्जः संस्कारोऽन्यसंस्कारप्रतिबन्धी

 

जैसे जैसे ऋतंभरा विकसित होती

दृढ़ संस्कारों से परिलक्षित होती

रुक जाते अशुभ संस्कार सभी

खो जाते बुरे आधार सभी

शुभ संस्कारों का प्रवाह है बहता

तब योगी गहरा भाव है भरता

साधना में निमग्न हो जाता है

योग मार्ग में संलग्न हो जाता है

2 thoughts on “1.50”

  1. Mahimansinh says:

    I can’t see the Hindi interpretation of the Sutras

    1. admin says:

      Now you can access for paad one

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