निर्विचार समाधि का अभ्यास करते हुए जब उसमें सिद्धि हो जाती है तब फलस्वरूप साधक को जो वस्तु जैसी है वैसा ही उसका स्वरूप दिखाई देने लगता है।
साधक की जो बुद्धि में योगाभ्यास से पूर्व जो कुछ भी अशुद्धि थी उसका शुद्धिकरण हो जाता है जिससे उसकी बुद्धि में सत्त्व का प्रकाश होने से एक स्वच्छ एवं प्रवाहपूर्ण स्थिति निर्मित होती है जिसे योग की भाषा में अध्यात्म प्रसाद कहते हैं।
सरल भाषा में समझें तो निर्विचार समाधि के सिद्धि के फलस्वरूप जो अध्यात्म का प्रसाद मिलता है वह है- बुद्धि की शुद्धि और शुद्ध बुद्धि से जो वस्तु जैसी है वैसे ही साधक को दिखती है और वैसा ही ठीक ठीक स्वरूप समझ में भी आता है।
अध्यात्मप्रसाद पाने से साधक को परिस्तिथि से ऊपर उठने की कला आ जाती है और उसे अपने आस पास ही नहीं स्वयं के भीतर भी घटित हो रही घटनाओं का पता चलने लगता है। उसकी बुद्धि में सही निश्चय करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
जिस प्रकार किसी ऊंचे पर्वत पर स्थित व्यक्ति को शिखर से नीचे देखने पर अन्य व्यक्ति, स्थिति स्पष्टता से दिखाई देती है और उसे विस्तृत दृष्टि मिलती है उसी प्रकार निर्विचार की सिद्धि स्वरूप निर्मल बुद्धि या प्रज्ञा की प्राप्ति साधक को प्राप्त होती है।
सूत्र: निर्विचारवैशारद्येऽध्यात्मप्रसादः
निर्विचार समाधि का क्या फल है मिलता?
भीतर साधक के अध्यात्म का पुष्प है खिलता
बुद्धि शुद्ध और निर्मल हो जाती
वस्तुओं का साफ स्वच्छ स्वरूप दिखाती
योग मार्ग में योग का बल है मिलता
साधक को अध्यात्म का फल है मिलता
संपूर्ण पाद का सरल एवं अद्भुत विवेचन है। काफी सारे प्रश्न, साफ और स्पष्ट हो गये। भगवान ने आपका संपर्क करवा दिया। अंतर से प्रणाम करता हूं। धन्यवाद।