इस प्रकार जब योगी ऋतम्भरा प्रज्ञा जनित संस्कार से युक्त होकर बुरे संस्कारों को पूर्णतः निरोध अर्थात रोकने में सक्षम हो जाता है तब वह उस संस्कार का भी निरोध करना प्रारंभ करने लग जाता है। जब ऋतम्भरा प्रज्ञा से उत्पन्न अक्लिष्ट संस्कार या वृत्ति को भी योगी छोड़ देता है या उसका निरोध कर लेता है तब जो स्थिति निर्मित होती है उसे निर्बीज समाधि या असम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं। यह योग मार्ग की सबसे ऊंची स्थिति कही गई है जहां पर सब प्रकार से संस्कारों ( चाहे अच्छे संस्कार हो या बुरे संस्कार) का समूल नाश हो जाता है। उनका बीज भी शेष नहीं रहता है।
एक उदाहरण से समझते हैं- मान लीजिए आप जंगल में भृमण हेतु गए हैं और वहां मार्ग में चलते चलते आपके पैर में एक कांटा चुभ जाता है। पैर से कांटा निकालने के प्रयत्न में आप एक और कांटा तोड़ते हैं और उससे पैर में चुभे कांटे को निकालने लगते हैं।
थोड़ा प्रयास करने पर, दर्द सहने पर पैर में चुभा कांटा निकल जाता है और आप जिस कांटे से कांटा निकाल रहे थे उसे भी फेंक देते हैं। कोई भी समझदार व्यक्ति उस कांटे को अपने हृदय से लगाकर नहीं रखता है यह सोचकर कि इस कांटे ने तो मेरे पैर में चुभे कांटे को निकाला था इसलिए मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है। एक बात और स्पष्ट है कि जबतक कांटे की स्मृति मात्र भी है या कांटा चुभने का विकल्प शेष है तब तक आपके जीवन से कांटा नहीं निकल सकता है।
इसी प्रकार योग मार्गी ऋतम्भरा प्रज्ञा जनित संस्कार से अपने सभी बुरे संस्कारों, विकारों को निकाल फेंकता है और फिर प्रयत्नपूर्वक उस संस्कार से भी अपने को मुक्त कर लेता है। जिससे अब किसी भी प्रकार से वह संस्कारो या वृत्तियों के फेर में न पड़े।
यह बात गांठ बांध लें कि जब तक शुभ संस्कार भी व्यक्ति में बीज रूप से उपस्थित हैं तब तक बुरे संस्कारों के पुनः उदय होने की संभवनाएं हैं। यह अकाट्य सत्य है।
एक व्यक्ति के लिए योगी बनने के सफर का यह अंतिम गंतव्य है और हम सबको अंततोगत्वा इसी गंतव्य की ओर अपने जीवन की दिशा और दशा निर्मित करनी है।
सूत्र: तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीजः समाधिः
जैसे कांटे से कांटा निकाला जाता
पर उस कांटे को नहीं संभाला जाता
वैसे ही ऋतंभरा प्रज्ञा का उपयोग हैं करते
जब सब शुभ अशुभ संस्कार बिखरते
तब ऋतंभरा प्रज्ञा से भी पार है जाना
जीवन का वह आयाम अनजाना
जब संस्कार सब दग्धबीज हो जाते
तब योगी स्थिति निर्बीज को पाते
जीवन में जो अबतक जो कुछ भोगा
अब संस्कारों का अंकुरण न होगा
योग का यह फल सर्वोत्तम
पुरुष बन जाता है पुरुषोत्तम
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