Chapter 1 : Samadhi Pada
|| 1.51 ||

तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीजः समाधिः


पदच्छेद: तस्य , अपि , निरोधे , सर्व , निरोधात् , निर्बीजः , समाधिः ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तस्य - उस (ऋतंभरा-प्रज्ञा-जन्य संस्कार) के
  • अपि - भी
  • निरोधे - निरोध (हो जाने पर)
  • सर्व - सबका
  • निरोधात् - निरोध हो जाने के कारण
  • निर्बीजः - निर्बीज
  • समाधि: - समाधि (हो जाती है) ।

English

  • tasya - of that
  • api - also
  • nirodhe - restraint, cessation
  • sarva - of all
  • nirodhat - through nirodhak
  • nirbijah - seedless
  • samadhih - entasy, oneness.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उस (ऋतंभरा प्रज्ञा जन्य संस्कार) के भी निरोध हो जाने पर सबका निरोध हो जाने के कारण निर्बीज समाधि हो जाती है ।

Sanskrit: 

English: By the restraint of even this (impression, which obstructs all other impressions), everything is restraint, comes the Nirbija (seedless) Samadhi.

French: Par la contrainte même de celle-ci (impression qui obstrue toutes les autres impressions), tout est retenue, vient le Samadhi Nirbija (sans pépins).

German: Der Zustand, in dem alle Prägungen eingebunden sind, einschließlich derer, die ohne Schlussfolgerungen und Quellwissen entstanden sind, heißt Nirbījas-Samādhi ( die freie vollkommene Erkenntnis ).

Audio

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Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

इस प्रकार जब योगी ऋतम्भरा प्रज्ञा जनित संस्कार से युक्त होकर बुरे संस्कारों को पूर्णतः निरोध अर्थात रोकने में सक्षम हो जाता है तब वह उस संस्कार का भी निरोध करना प्रारंभ करने लग जाता है। जब ऋतम्भरा प्रज्ञा से उत्पन्न अक्लिष्ट संस्कार या वृत्ति को भी योगी छोड़ देता है या उसका निरोध कर लेता है तब जो स्थिति निर्मित होती है उसे निर्बीज समाधि या असम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं। यह योग मार्ग की सबसे ऊंची स्थिति कही गई है जहां पर सब प्रकार से संस्कारों ( चाहे अच्छे संस्कार हो या बुरे संस्कार) का समूल नाश हो जाता है। उनका बीज भी शेष नहीं रहता है।

एक उदाहरण से समझते हैं- मान लीजिए आप जंगल में भृमण हेतु गए हैं और वहां मार्ग में चलते चलते आपके पैर में एक कांटा चुभ जाता है। पैर से कांटा निकालने के प्रयत्न में आप एक और कांटा तोड़ते हैं और उससे पैर में चुभे कांटे को निकालने लगते हैं।

थोड़ा प्रयास करने पर, दर्द सहने पर पैर में चुभा कांटा निकल जाता है और आप जिस कांटे से कांटा निकाल रहे थे उसे भी फेंक देते हैं। कोई भी समझदार व्यक्ति उस कांटे को अपने हृदय से लगाकर नहीं रखता है यह सोचकर कि इस कांटे ने तो मेरे पैर में चुभे कांटे को निकाला था इसलिए मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है। एक बात और स्पष्ट है कि जबतक कांटे की स्मृति मात्र भी है या कांटा चुभने का विकल्प शेष है तब तक आपके जीवन से कांटा नहीं निकल सकता है।

इसी प्रकार योग मार्गी ऋतम्भरा प्रज्ञा जनित संस्कार से अपने सभी बुरे संस्कारों, विकारों को निकाल फेंकता है और फिर प्रयत्नपूर्वक उस संस्कार से भी अपने को मुक्त कर लेता है। जिससे अब किसी भी प्रकार से वह संस्कारो या वृत्तियों के फेर में न पड़े।

यह बात गांठ बांध लें कि जब तक शुभ संस्कार भी व्यक्ति में बीज रूप से उपस्थित हैं तब तक बुरे संस्कारों के पुनः उदय होने की संभवनाएं हैं। यह अकाट्य सत्य है।

एक व्यक्ति के लिए योगी बनने के सफर का यह अंतिम गंतव्य है और हम सबको अंततोगत्वा इसी गंतव्य की ओर अपने जीवन की दिशा और दशा निर्मित करनी है।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीजः समाधिः

 

जैसे कांटे से कांटा निकाला जाता

पर उस कांटे को नहीं संभाला जाता

वैसे ही ऋतंभरा प्रज्ञा का उपयोग हैं करते

जब सब शुभ अशुभ संस्कार बिखरते

तब ऋतंभरा प्रज्ञा से भी पार है जाना

जीवन का वह आयाम अनजाना

जब संस्कार सब दग्धबीज हो जाते

तब योगी स्थिति निर्बीज को पाते

जीवन में जो अबतक जो कुछ भोगा

अब संस्कारों का अंकुरण न होगा

योग का यह फल सर्वोत्तम

पुरुष बन जाता है पुरुषोत्तम

3 thoughts on “1.51”

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