Chapter 1 : Samadhi Pada
|| 1.42 ||

तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः


पदच्छेद: तत्र , शब्द , अर्थ , ज्ञान , विकल्पैः , संकीर्णा , सवितर्का , समापत्तिः॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तत्र - उन (समापत्तियों में)
  • शब्द - शब्द,
  • अर्थ - अर्थ,
  • ज्ञान - ज्ञान - (इन तीनों के)
  • विकल्पै: - विकल्पों से
  • संकीर्णा - मिली हुई
  • समापत्ति - समापत्ति अर्थात् समाधि
  • सवितर्का - सवितर्क अर्थात् वितर्कयुक्त कहलाती है ।

English

  • shabda - word, sound
  • artha - meaning
  • jnana - knowledge
  • vikalpaih - with options
  • sankeerna - combined
  • savitarka - accompanied with gross thoughts
  • samapattih - engrossment .

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उन समापत्तियों में शब्द, अर्थ, ज्ञान - इन तीनों के विकल्पों से मिली हुई समापत्ति अर्थात् समाधि सवितर्क अर्थात् वितर्कयुक्त कहलाती है ।

Sanskrit: 

English: The samadhi in which sound, meaning and resulting knowledge being mixed up is called savistarka samadhi.

French: Le samadhi dans lequel le son, la signification et les connaissances résultantes sont mélangés est appelé savistarka samadhi.

German: Dieser Zustand Hat (Vier) Verschiedene Intensitäten. Wenn Der Wahrnehmung Quellwissen, Schlussfolgerungen Oder Vorstellungen Beigemischt Sind, Heißt Er Savitarkā-samāpatti.

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Yog Sutra 1.42
Explanation 1.42
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

समापत्ति के चार भेदों में से जो एक सवितर्क समापत्ति है, वह शब्द, अर्थ एवं ज्ञान इस प्रकार तीन भेदों से मिली हुई है इसे ही सवितर्का समापत्ति कहते हैं।

आम जनमानस के लिए यह सूत्र समझना थोड़ा सा कठिन प्रतीत होता है इसलिए इसे सरल अर्थों में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।

एक एक शब्द पर अच्छे प्रकार से विचार करते हैं।

शब्द- जिसे हम मुख से उच्चारित करते हैं और कान से जिसका श्रवण किया जाता है। जैसे किसी बच्चे का नाम रोहित, श्याम इत्यादि। जैसे किसी पशु का नाम हाथी, गौ इत्यादि।

अर्थ- शब्द में निहित एक अर्थ होता है जो किसी जाति विशेष का बोध कराता है, वस्तु, प्राणी आदि के विशिष्ट गुणों का ज्ञान कराता है। जैसे श्री राम शब्द का उच्चारण करने से हमें राजा दशरथ पुत्र का बोध होता है, सीता मैया जिनकी अर्धांगिनी थी, हनुमान जिनके भक्त थे, जिन्होंने लंका विजय कर राक्षस रावण का वध किया था आदि अनेक अर्थ उपस्थित हो जाते हैं।

ज्ञान- कानो से शब्द सुनकर, उस शब्द के विशेष अर्थ का बोध कराने वाली सत्त्वप्रधान बुद्धि जब एक अलग अलग प्रकार से शब्द, उसका अर्थ एवं यही इस शब्द का अर्थ है ऐसा ज्ञान कराती है|

वस्तुतः शब्द, उसका अर्थ एवं उसका ज्ञान यह तीन अलग अलग प्रक्रिया है। जब बालपन में हम शब्द का उच्चारण सीखते हैं और प्रत्येक शब्द को उसके अर्थ के साथ मिलाते हैं तो यह हमारे अभ्यास में दृढ़ हो जाता है, जिसके कारण से शब्द सुनते ही हमें उसका अर्थ बोध जो जाता है। इस प्रकार हमें लगता है कि शब्द और उसका अर्थ एवं ज्ञान इसमें कोई भेद नहीं है पर तात्त्विक दृष्टि से ऐसा नहीं होता है।

पहले शब्द सुनाई देता है, फिर उसका जो विशेष अर्थ है उसका हमें बोध होता है और तत्पश्चात उस शब्द का यही अर्थ होता है यह निश्चयात्मक ज्ञान हमें होता है।

जब योगी एकाग्रचित्त अवस्था में “गौ” इस पर मन को एकाग्र किया जाता है तब गौ(शब्द), गौ (अर्थ) एवं गौ (ज्ञान) इस प्रकार तीन अलग अलग प्रकार से यह भासता है अर्थात तीनों को पृथक देखता है। गौ का शब्द-अर्थ एवं ज्ञान को अलग अलग साक्षात्कार करता है । योगी की इस अवस्था को योग की भाषा में सवितर्का समापत्ति कहते हैं।

जब बच्चा बोलना सीख रहा होता है तो वह एक अत्यंत जटिल प्रकिया से गुजरता है। वह अपने चारों ओर घटित हो रही प्रत्येक घटना का गहनता से देखता है। जब भी वह एक निश्चित शब्द को बार बार सुनता है, एक जैसे सुनाई देने वाले शब्दों के ऊपर उसका ध्यान जाता है तब वह अपने आस पास उपस्थित वस्तुओं को उस शब्द के साथ मिलाने का प्रयास करता है। प्रत्येक बार जब भी वह पानी ऐसा शब्द सुनता है तो उसके आस पास हर वस्तु का वह निरीक्षण करता है जिसे पानी कहा जा रहा है। जब घर में कोई कहता है पानी दीजिये तब बच्चा शब्द सुनता है और अनुमान लगाता है कि पानी क्या है? जब घर का कोई सदस्य ग्लास में पानी लेकर आता है और कहता है ये लीजिये पानी! तो उस समय बच्चा ग्लास को पानी समझता है।

इसी प्रकार जब कोई कहता है नहाने को पानी रख दीजिए, तब बच्चा बड़ी बाल्टी को पानी समझता है, इस प्रकार जब भी पानी शब्द सुनता है तब तब वह पानी किसे कहा जा रहा है यह निरीक्षण करता रहता है। और तब तक करता है जब तक वह निश्चित नहीं हो जाता कि पानी शब्द का वस्तुतः अर्थ क्या है? जब देखता है कि इस बार ग्लास तो नहीं है अपितु बड़ी बाल्टी जैसा कुछ है तो वह ग्लास के अर्थ को छोड़ देता है। फिर जब कभी बाल्टी न होकर केवल पानी होता है तो वह इस निर्णय पर पहुंचता है कि जब जब पानी शब्द बोला गया यह जो तरल पदार्थ है वह ग्लास में भी था, बाल्टी में भी था, पाइप से भी निकल रहा था इसलिए यह तरल बहने वाला पदार्थ ही पानी है।

इस प्रकार एक बार निश्चित ज्ञान हो जाने के बाद जब भी पानी शब्द का उच्चारण किया जाएगा तब उसे तत्क्षण अर्थ बोध हो जाएगा और इस तरल शब्द को ही पानी कहते हैं ऐसा ज्ञान भी हो जाएगा।

आपने देखा कि किस तरह प्रारंभ में बच्चे के लिए शब्द अलग था, फिर उसका अर्थ अलग से बोध हुआ और अंत में तरल पदार्थ को ही पानी कहा जा रहा है ऐसा ज्ञान हुआ।

धीरे धीरे प्रत्येक शब्द के विषय में (शब्द-अर्थ और ज्ञान) का एक्य होने लगता है। इसलिए जब योगी को पुनः इनका पृथक पृथक बोध होकर इनमें तदाकार वृत्ति बनने लगे जाए तो इसे ही सवितर्का समापत्ति कहते हैं।

अब आगे के सूत्र में निर्वितर्का समापत्ति की परिभाषा कहेंगे।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: तत्र शब्दार्थज्ञानविकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः

 

किस विधि मानव को वस्तु बोध है होता

जब शब्द – अर्थ -ज्ञान का युगपत संबोध है होता

ध्वनि मात्र तो शब्द की सत्ता

उसपर शब्द के अर्थ की महत्ता

ज्ञान कसौटी अनुभव की

सवितर्क समाधि के अभिभव की

3 thoughts on “1.42”

  1. अन्तिम आर्य योगाभ्यासी says:

    कोटि कोटि आभार है ‘”पूज्य श्री”। कितना उपयुक्त उदाहरण चुनकर आपने एक जटिल सूत्र को सहज बना दिया। हार्दिक आभार है आपका क्योंकि इस व्याख्या से पूर्व तो यह सूत्र समझ से बाहर ही था परन्तु आपकी सरल व व्यवहारिक व्याख्या ने इसे बहुत हद तक सुलझा दिया यद्यपि मन में अभी भी पूर्णता प्राप्त नही हुई परन्तु इसका तात्पर्य यह नही की आपकी व्याख्या जटिल थी , मूलतः इसमें हमारे ही ज्ञान व समझ की न्यूनता है जिसे आगे के स्वाध्याय में और बढ़ाने का प्रयास करेंगे। “जय गुरुदेव”

  2. Great post I have been reading all your posts and they are really great keep up the good work.

    1. admin says:

      Thanks for your feedback. Please share with your known ones.

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