Chapter 1 : Samadhi Pada
|| 1.41 ||

क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनतासमापत्तिः


पदच्छेद: क्षीण , वृत्ते: , अभिजातस्य , इव , मणे: , ग्रहीतृ , ग्रहण , ग्राह्येषु , तत्स्थ , तदञ्जनता , समापत्तिः ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • क्षीणवृत्ते: - जिसकी समस्त बाह्य वृत्तियाँ क्षीण हो चुकी हैं, ऐसे
  • मणे: - स्फटिक मणि (की)
  • इव - भाँति
  • अभिजातस्य - निर्मल चित्त का;
  • ग्रहीतृ - जो ग्रहीता अर्थात् आत्मा
  • ग्रहण - ग्रहण अर्थात् अंत:करण और इंद्रियां (तथा)
  • ग्राह्य - ग्राह्य अर्थात् पंचभूत और विषयों - में
  • तत्स्थ - एकाग्र स्थित (होकर)
  • तदञ्जन्ता - उसी (विषय के) स्वरूप को प्राप्त हो जाना
  • समापत्ति - सम्प्रज्ञात समाधि अर्थात् चित्त का विषय के साथ तदाकार हो जाना (है) ।

English

  • ksheenna - weakened
  • vritte - modification of mind
  • abhijatasya - transparent, purified
  • Iva - like
  • maneh - crystal, gem
  • grahitri - perceiver, cogniser
  • grahanna - perceiving
  • grahyeshu - object of perception
  • tatstha - that abide
  • tad - that
  • angjanata - saturation
  • samapattih - engrossment

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: भावार्थः जिसकी समस्त बाह्य वृत्तियाँ क्षीण हो चुकी हैं, ऐसे स्फटिक मणि की भाँति निर्मल चित्त का; जो ग्रहीता अर्थात् आत्मा ग्रहण अर्थात् अंत:करण और इंद्रियां तथा ग्राह्य अर्थात् पंचभूत और विषयों - में एकाग्र स्थित होकर उसी विषय के स्वरूप को प्राप्त हो जाना सम्प्रज्ञात समाधि अर्थात् चित्त का विषय के साथ तदाकार हो जाना है ।

Sanskrit: 

English: When the modifications of mind have become weakened, the mind becomes like a transparent crystal, and thus can easily take on the qualities of whatever object observed - whether it be the perceiver (Grahitri), the perceiving (Grahanna) or the object of perception ( Grahyesu). This achievement of sameness or identity with the object of concentration is known ad samadhi.

French: Lorsque les modifications de l'esprit sont affaiblies, l'esprit devient comme un cristal transparent et peut ainsi facilement revêtir les qualités de tout objet observé - qu'il s'agisse de celui qui perçoit (Grahitri), de celui qui percevoir (Grahanna) ou de celui de la perception ( Grahyesu). Cet acquis d'identité ou d'identité avec l'objet de concentration est connu ad samadhi.

German: Im Zustand der genauen Erkenntnis, genannt Samāpatti, ist die Triebhaftigkeit des Citta ( des meinenden Selbst) abgeschwächt. Citta ist hier wie ein Edelstein von hoher Herkunft. Der begreifende Drastā, das begriffene Objekt und Citta, das Mittel zum Begreifen, sind in einer Einheit, so dass das Objekt von Citta genau übernommen und an Drastā weitervermittelt wird.

Audio

Yog Sutra 1.41
Explanation 1.41
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

जिस योगी की वृत्तियों में राजसिक एवं तामसिक गुण का प्रभाव क्षीण हो गई हैं और सात्त्विक गुण का प्रभाव शेष रह गया है, ऐसा स्पष्ट एवं निर्मल चित्त, स्फटिक मणि के समान ग्रहीता (ग्रहण करने वाला- अस्मिता), ग्रहण ( जिससे ग्रहण किया जाए-इंद्रियां), ग्राह्य (स्थूल एवं सूक्ष्म विषयों में) एकाग्र होकर उनके ही स्वरूप को प्राप्त हो जाता है इस विशेष स्थिति को समापत्ति अर्थात् वस्तु आकार हो जाना कहते हैं।

महर्षि ने जब ऊपर उपायों, विधियों की बात की तो प्रश्न उठता है कि ऐसे शांत एवं निर्मल चित्त का कैसा स्वरूप होता है? इसी प्रश्न के उत्तर में यह सूत्र है।

जब चित स्वच्छ एवं स्पष्ट हो जाता है तो उसकी उपमा महर्षि ने स्वच्छ एवं निर्मल स्फटिक मणि से की है, जिसका अपना कोई रंग रूप नहीं होता अपितु उसके सम्मुख जिस रंग की वस्तु आएगी वह उसी रंग का भासित होने लग जाता है। यदि वस्तु का रंग नीला है तो वह नीला दिखाई देता है और यदु वस्तु लाल रंग की है तो सफयिक मणि भी लाल रंग की दिखाई देने लग जाती है।

इसी प्रकार जब चित्त भी इतना ही स्वच्छ एवं निर्मलता की दशा को उपलब्ध हो जाता है तो उसके सम्मुख जो विषय आता है वह तदाकार (उसी विषय जैसा हो जाता है) होकर उसका स्वरूप दिखाने लग जाता है।

यहां एक बात ध्यान देने योग्य है- यह स्थिति सम्प्रज्ञात समाधि की ही स्थिति है। जिसे समापत्ति के नाम से कहा गया है। यहां सदहक को अपने जीवनचर्या को विशेष रूप से सात्त्विकता में ढालना होता है अन्यथा किसी भी प्रकार की असावधानी से पतन हो सकता है।

चूंकि चित्त स्वच्छ एवं निर्मलता के साथ, राजसिक एवं तामसिक गुण प्रभाव से हीन है लेकिन किसी भी प्रकार का अशुभ विषय मन में आने से सहज गति प्रभावित हो सकती है। क्योंकि चित्त तो स्वच्छ है और वह विषय के स्वरूप को धारण कर लेने की क्षमता रखता है जिसे साक्षात्कार भी कहते हैं।

स्वच्छ जीवनचर्या का पालन साधक के लिये अत्यंत आवश्यक है, यही सावधानी है।

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सूत्र: क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनतासमापत्तिः

 

तब, वृत्तियां क्षीण साधक की होती

साफ चित्त में बीज शुभ का बोती

स्फटिक मणि सा चित्त हो जाता

विषयों के ऊपर दत्तचित्त हो जाता

चित्त में विषयों का रंग रूप है पड़ता

लेकिन स्वयं तो चित्त अरूप है रहता

आत्मा ग्रहीता तो ग्रहण इन्द्रियां हैं

स्थूल विषय को ग्राह्य नाम दिया है

एकाग्र स्थिति तीनों की जब हो जाती

योगी की तदाकार स्थिति ये कहलाती

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