जिस योगी की वृत्तियों में राजसिक एवं तामसिक गुण का प्रभाव क्षीण हो गई हैं और सात्त्विक गुण का प्रभाव शेष रह गया है, ऐसा स्पष्ट एवं निर्मल चित्त, स्फटिक मणि के समान ग्रहीता (ग्रहण करने वाला- अस्मिता), ग्रहण ( जिससे ग्रहण किया जाए-इंद्रियां), ग्राह्य (स्थूल एवं सूक्ष्म विषयों में) एकाग्र होकर उनके ही स्वरूप को प्राप्त हो जाता है इस विशेष स्थिति को समापत्ति अर्थात् वस्तु आकार हो जाना कहते हैं।
महर्षि ने जब ऊपर उपायों, विधियों की बात की तो प्रश्न उठता है कि ऐसे शांत एवं निर्मल चित्त का कैसा स्वरूप होता है? इसी प्रश्न के उत्तर में यह सूत्र है।
जब चित स्वच्छ एवं स्पष्ट हो जाता है तो उसकी उपमा महर्षि ने स्वच्छ एवं निर्मल स्फटिक मणि से की है, जिसका अपना कोई रंग रूप नहीं होता अपितु उसके सम्मुख जिस रंग की वस्तु आएगी वह उसी रंग का भासित होने लग जाता है। यदि वस्तु का रंग नीला है तो वह नीला दिखाई देता है और यदु वस्तु लाल रंग की है तो सफयिक मणि भी लाल रंग की दिखाई देने लग जाती है।
इसी प्रकार जब चित्त भी इतना ही स्वच्छ एवं निर्मलता की दशा को उपलब्ध हो जाता है तो उसके सम्मुख जो विषय आता है वह तदाकार (उसी विषय जैसा हो जाता है) होकर उसका स्वरूप दिखाने लग जाता है।
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है- यह स्थिति सम्प्रज्ञात समाधि की ही स्थिति है। जिसे समापत्ति के नाम से कहा गया है। यहां सदहक को अपने जीवनचर्या को विशेष रूप से सात्त्विकता में ढालना होता है अन्यथा किसी भी प्रकार की असावधानी से पतन हो सकता है।
चूंकि चित्त स्वच्छ एवं निर्मलता के साथ, राजसिक एवं तामसिक गुण प्रभाव से हीन है लेकिन किसी भी प्रकार का अशुभ विषय मन में आने से सहज गति प्रभावित हो सकती है। क्योंकि चित्त तो स्वच्छ है और वह विषय के स्वरूप को धारण कर लेने की क्षमता रखता है जिसे साक्षात्कार भी कहते हैं।
स्वच्छ जीवनचर्या का पालन साधक के लिये अत्यंत आवश्यक है, यही सावधानी है।
सूत्र: क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदञ्जनतासमापत्तिः
तब, वृत्तियां क्षीण साधक की होती
साफ चित्त में बीज शुभ का बोती
स्फटिक मणि सा चित्त हो जाता
विषयों के ऊपर दत्तचित्त हो जाता
चित्त में विषयों का रंग रूप है पड़ता
लेकिन स्वयं तो चित्त अरूप है रहता
आत्मा ग्रहीता तो ग्रहण इन्द्रियां हैं
स्थूल विषय को ग्राह्य नाम दिया है
एकाग्र स्थिति तीनों की जब हो जाती
योगी की तदाकार स्थिति ये कहलाती