स्वप्नज्ञनित एवं निद्रा से जनित ज्ञान का आलंबन लेने वाला चित्त भी मन को स्थिरता एवं प्रशांतता देने वाला होता है।
शास्त्रों में तीन प्रमुख अवस्थाओं को माना गया है।
जाग्रत अवस्था में रजोगुण की अधिकता होने और तमो गुण के दबे होने से मनुष्य की वृत्तियां बाहर की ओर बहती हैं। वहीं निद्रा में तमोगुण बढ़ जाता है और रजोगुण को दबा लेता है जिससे वृत्तियां भीतर की ओर (अंतर्मुखी) हो जाती हैं।
जाग्रत से भिन्न निद्रा अवस्था को भी ज्ञान की दृष्टि से दो भागों में बांटा जा सकता है।
एक स्वप्न दूसरा सात्विक निद्रा। ऐसे व्यक्तियों के लिए, जिन्हें अच्छी सात्त्विक वृत्ति के कारण सात्त्विक स्वप्न आते हैं उनके लिए एक उपाय बताते हैं। वे कहते हैं कि, जब व्यक्ति प्रातः काल सोकर उठता है तो कई बार स्वप्न का ज्ञान उठने के बाद बना रहता है। प्रयत्नपूर्वक यदि कोई उस ज्ञान को स्मरण कर कुछ काल तक उसी स्वप्न ज्ञान की स्मृति को बना पाए तो एकाग्रता के समय उस ज्ञान का निरंतर आलंबन लेकर भी मन शांत और निर्मल हो जाता है। स्मृति का गहरा प्रयोग कर वह चित्त एक वृत्ति का आश्रय लेकर स्थिरता को प्राप्त हो जाता है।
इससे भिन्न, अर्थात् स्वप्न से भिन्न सुषुप्ति अवस्था से बाहर आकर जब कोई व्यक्ति यह कहता है कि वह रात सुखपूर्वक सोया, उसे बहुत अच्छा विश्राम प्राप्त हुआ तो यह जो सोने के बाद का ज्ञान है यदि कोई इस अनुभूति का आलंबन लेकर मन को एकाग्र करे तो वह भी शांति को प्राप्त कर सकता है और यह आलंबन भी मन को सम्यक रूप से बांधने वाला होता है।
महर्षि ने इन सूत्रों में प्रसिद्ध सभी विधियों के बारे में अपने शिष्यों को बता दिया, इन विधियों की कोई भी सीमा नहीं है यह जानकर उन्होंने चित्त की प्रशांतता प्राप्त करने के लिए अंतिम उपाय भी अगले सत्र में बता दिया है।
सूत्र: स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा
स्वप्न निद्रा को आधार बनाकर
उनकी स्मृति पर चित्त लगाकर
तब मन एकाग्रता को पाता है
मन प्रसन्नता पाता है
अच्छी निद्रा सात्त्विक भोजन से आती
अच्छे सपने शुभ चेष्टाएं दिलाती