विशोका वा ज्योतिष्मती
शब्दार्थ / Word Meaning
सूत्रार्थ / Sutra Meaning
Hindi:शोक से रहित एवं प्रकाश पूर्ण प्रवृत्ति उत्पन्न करने से भी साधक का मन स्थिरता को प्राप्त होता है।
पूर्व में कहे गए उपायों से जिस प्रकार मन स्थिर, शांत एवं विमल हो जाता है इसी प्रकार विशोका ज्योतिष्मती नाम की इस विशेष प्रवृत्ति से भी मन विमल हो जाता है।
व्यास भाष्य के अनुसार यह दो प्रकार की है-
इस प्रवृत्ति में सत्त्व गुण अधिक मात्रा में रहता है; रजो गुण एवं तमो गुण शून्य रहता है। रजो गुण एवं तमो गुण रहित होने से ही इसे विशोका कहा जाता है। शोक रजो गुण एवं तमो गुण से ही उत्पन्न होता है।
कुछ ध्यान के अभ्यासी बताते हैं कि नाभि के ऊपर हृदय प्रदेश में एक कमल है जिसका मुख नीचे की ओर है। श्वास को तेजी से बाहर फेंकने एवं वहीं रोकने से यह कमल ऊर्ध्व मुख हो जाता है और साधक प्रफुल्लित अनुभव करने लग जाता है। इस हृदय प्रदेश स्थित कमल के बीच में ओंकार है। इस कमल का सीधा सम्बन्ध ब्रह्मनाड़ी से है जो सूर्य, चंद्र आदि लोको से संबंधित है। जब साधक या योगी इस बिंदु पर एकाग्र होता तो आत्मा में सात्विक प्रकाश भासने लग जाता है। योगी को सर्वत्र सुनहरा प्रकाश अनुभव में आता है जिससे उसका मन गहरा शांत होने लग जाता है।
कुछ योगी बताते हैं कि भ्रू मध्य में सात्विक प्रकाश की कल्पना करने से धीरे धीरे वहां प्रकाश की झलक दिखाई देने लग जाती है और गहरे अभ्यास से पूरे शरीर में वह प्रकाश फैलने लग जाता है। जिससे साधक का मन उसी प्रकाश में तल्लीन हो जाता है और वह स्वयं को प्रकाश स्वरूप अनुभव करने लग जाता है।
सूत्र: विशोका वा ज्योतिष्मती
विशोका ज्योतिष्मति एक प्रवृति विशेष है
मन की प्रसन्नता दिलाती वृत्ति विशेष है
जब मन पर सत्त्व गुण है छाता
योगी शोक रहित स्थिति है पाता
तब प्रकाशमय मन खूब चमकता
कांतिमय शरीर तब योगी का दमकता
Very well written