Chapter 1 : Samadhi Pada
|| 1.45 ||

सूक्ष्मविषयत्वं चालिङ्गपर्यवसानम्


पदच्छेद: सूक्ष्म , विषयत्वम् , च , अलिङ्ग , पर्यवसानम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • च - तथा
  • सूक्ष्म - सूक्ष्म
  • विषयत्वम् - विषयता
  • अलिङ्ग - प्रकृति
  • पर्यवसानम् - पर्यन्त है ।

English

  • sookshma - subtle
  • vishayatvam - object
  • cha - and
  • alingga - unmanifested prakriti
  • paryavasanam - extending up to, ending at

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: तथा सूक्ष्म विषयता प्रकृति पर्यन्त है ।

Sanskrit: 

English: The subtle objects end in Alingga - the unmanifested Prakriti.

French: Les objets subtils aboutissent à Alingga - le Prakriti non manifesté.

German: Das Objekt der Betrachtung kann immer subtiler werden. Das Unbenennbare ist die Grenze dafür und kann auch noch das Objekt der Betrachtung sein.

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Yog Sutra 1.45
Explanation 1.45
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Hindi Explanation
 

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

सूक्ष्म विषयता (अर्थात जड़ पदार्थों की सूक्ष्मता) तो मूल प्रकृति पर्यन्त अर्थात् मूल प्रकृति तक रहती है।

 

इससे पूर्व के सूत्र में महर्षि ने “सूक्ष्म विषया व्याख्याता” ऐसा कहा था अब इस सूत्र में सूक्ष्म विषय को समझा रहे हैं कि सूक्ष्म विषय क्या है और कहां तक है। इससे पूर्व के सूत्र की व्याख्या में कहा था कि-

 

सवितर्क और निर्वितर्क समापत्ति में स्थूल भूत एकाग्रता के विषय होते हैं जबकि सविचार एवं निर्विचार समापत्ति में सूक्ष्म भूत विषय बनते है अतः यह प्रश्न उठता है कि यह सूक्ष्मता कहाँ तक संभव है, अतः महर्षि कहते हैं कि यदि जड़ पदार्थों में अणु के सूक्ष्म विषय को देखेंगे यह संबंधित तन्मात्रा तक जाएगी और यदि उझसे भी सूक्ष्म खोजेंगे तो सभी तन्मात्राओं का भी सूक्ष्म विषय “अहंकार” तत्त्व होगा। अहंकार का भी सूक्ष्म विषय “महत्तत्त्व” होगा। और अंत में जब महत्तत्त्व का भी सूक्ष्म विषय खोजेंगे तो इसकी समाप्ति ” अलिंग अर्थात मूल प्रकृति” पर होगी। मूल प्रकृति से परे जड़ पदार्थो की सूक्ष्म स्थिति नहीं होती है।

 

सांख्य की दृष्टि से जब तत्त्व का विवेचन किया जाता है तब 25 तत्त्वों की बात आती है। ये 25 तत्त्व हैं-

 

1.पुरुष

2.प्रकृति

3.महत्तत्व (बुद्धि, लिंगमात्र)

4.अहंकार

5.चक्षु

6.कर्ण

7.नासिका

8.जिह्वा

9.त्वक् (त्वचा)

10.वाक् (वाणी)

11.पाणि (हाथ)

12.पाद (पांव)

13.पायु

14.उपस्थ

15.मन

16.शब्द

17.स्पर्श

18.रूप

19.रस

20.गंध

21.पृथ्वी

22.जल

23.तेज

24.वायु

25.आकाश

 

 मूल प्रकृत्ति से शेष तत्त्वों की उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है—प्रकृति से महत्तत्व (बुद्धि), महत्तत्व से अहंकार, अहंकार से ग्यारह इंद्रियाँ (पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेंद्रियाँ और मन) और पाँच तन्मात्र, पाँच तन्मात्रों से पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) । जब प्रलय काल होता है तब ये सब तत्त्व फिर प्रकृति में क्रमशः विलीन हो जाते हैं।

 

पुरुष और मूल प्रकृति दो ऐसे तत्त्व हैं जिनका कोई उपादान कारण नहीं है अर्थात ये दो तत्त्व किसी से भी नहीं बने हैं, ये नित्य तत्त्व हैं। इन्हें बनाने वाला कोई भी नहीं है। यह जो कुछ दृश्य जगत (संसार) जिस भी रूप में दिख रहा है या अनुभव हो रहा है इसका मुख्य कारण मूल प्रकृति है। ईश्वर इस जगत रचना में सहायक कारण (निमित्त कारण) है।

 

योग दर्शन के सूत्रों की व्याख्या करते समय जो पारिभाषिक शब्द जैसे उपादान कारण, निमित्त कारण या फिर अलग अलग शास्त्रों के सिद्धांत आ रहे हैं उन्हें समझाने के लिए हम अलग से उदाहरण के साथ लिख देंगे जिससे आप आसानी से इन शब्दों के अर्थ को समझ पाएंगे।

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