कैवल्य पाद के प्रथम सूत्र में सिद्धि मिलने के पांच प्रकार के साधन बताए गए थे। जन्म, औषधि, मंत्र, तप और समाधि। ये सभी पांच प्रकार के धर्म जो हैं ये प्रकृति की प्रक्रिया या कार्य करने के ढंग में कोई परिवर्तन नहीं करते हैं अपितु ये तो केवल योग मार्ग के मध्य आने वाली बाधाओं, रुकावटों को हटाने का कार्य करती हैं। प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया में इनका कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।
इसलिए महर्षि इन्हें निमित्त कहते हैं। निमित्त उसे कहा जाता है जिसके पास हस्तक्षेप करने को कुछ नहीं होता अपितु वो तो किसी कार्य की पूर्णता के लिए सहयोग करते हैं।
महर्षि इसे किसान के उदाहरण के साथ समझा रहे हैं। जैसे एक किसान अपने खेत में बीज बोता है जिससे की उसे अच्छी फसल प्राप्त हो लेकिन समय के साथ साथ उस खेत में अनावश्यक रूप से खरपतवार, कांटे आदि फसल के साथ उग आते हैं। यह झाड़, खरपतवार फसल को भी ठीक से उगने नहीं देती और साथ में सभी आवश्यक पोषक तत्त्वों का भी अपने विकास में उपयोग करना प्रारंभ कर देती है जिससे फसल पूरी तरह उग नहीं पाती और परिणाम स्वरूप अच्छा फल नहीं देती है। किसान समय समय पर इस खरपतवार को खेत से निकलता रहता है जिससे फसल पूरी तरह फल दे पाए, लेकिन वह प्रकृति की व्यवस्था में किसी भी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नहीं करता है। केवल बाधाओं को हटाता जाता है इसी प्रकार ये सभी धर्म शरीर, इंद्रियों, मन, बुद्धि एवं हृदय की शुद्धता में जो बाधा बनकर खड़े व्यवधान हैं उन्हें हटाते हैं जिससे योगी का चित्त निर्मल हो जाता है, कुविचारों की धूल या खरपतवार सब हट जाती है और सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है और अंतिम लक्ष्य कैवल्य भी प्राप्त होता है।
महर्षि इस सूत्र से केवल इतना बता रहे हैं कि सिद्धियां केवल योग मार्ग की बाधाओं को हटाती हैं न कि प्रकृति के ऊपर अपना अधिकार रखती हैं। यहां महर्षि पूर्व सिद्ध सिद्धांत की रक्षा करते हुए यह सूत्र लिख रहे हैं।
सूत्र: निमित्तमप्रयोजकं प्रकृतीनां वरणभेदस्तु ततः क्षेत्रिकवत्
खेत में कार्य करते हुए किसान
बाधाओं को हटाते, करते समाधान
बीजों और पौधों का पोषण
खरपतवार से होता शोषण
किसान तो केवल अवरोध हटाता
बांकी कार्य स्वयं हो जाता
इसी प्रकार से धर्मादि साधन
करते योग बाधाओं का निर्मूलन
तब प्रकृति स्वयं से प्रवृत्त होती है
नए चित्तों का बीज बोती है