जब यह स्पष्ट हो गया कि परिणाम के एक होने से वस्तु तत्व भी एक ही होती हैं तो यह जिज्ञासा उठी कि आप जिसे एक ही वस्तु कह रहे हैं यह सबको अलग अलग क्यों अनुभव में आती है? क्यों नहीं उस वस्तु के विषय में सबका अनुभव और वर्णन एक जैसा नहीं होता है?
तब इस जिज्ञासा के उत्तर में महर्षि कह रहे हैं कि चित्त के विभिन्न प्रकार के ज्ञान वाला होने से हमें वस्तु एक होने पर भी अलग अलग अनुभव में आती है।
अर्थात वस्तु तो एक ही लेकिन हमारे चित्त का ज्ञान, अनुभव अलग होने से वह वस्तु भी अलग अलग अनुभव में आती है।
जैसे एक संतरा का फल हम 5 अलग अलग लोगों में बांटते हैं तो सभी को उसका मीठापन और खट्टापन अलग अलग महसूस होगा। सभी संतरे के स्वाद के बारे में अलग अलग प्रकार से बताएंगे, जबकि संतरा तो ही है और एक जैसा खट्टा और मीठापन लिए हुए है फिर भी उसके विषय में अलग अलग बातें अलग अलग लोग कर रहे हैं । इसी बात को महर्षि सिद्ध करना चाहते हैं कि सबके चित्त में अलग अलग ज्ञान होने के कारण वह वस्तु या पदार्थ सबको अलग अलग अनुभव में आता है।
इसी प्रकार से किसी एक व्यक्ति के विषय में सब अपनी राय अलग अलग रखते हैं जबकि वह व्यक्ति एक ही है। चित्त के भेद या चित्त में अनेक प्रकार से ज्ञान का भेद होने के कारण इसी संसार में वैविध्य देखने को मिलता है। अलग अलग विचारधाराएं, दृष्टि देखने को मिलती हैं। इसका मुख्य कारण चित्त के त्रिगुणात्मक होना है।
जब तक चित्त त्रिगुणात्मक प्रभाव में है तब तक इसी प्रकार से भिन्नता देखने को मिलेगी लेकिन जैसे ही विवेक ज्ञान की उत्पत्ति होगी फिर जो जैसा है उसका वैसा ही ज्ञान योगी को होने लग जाता है
No explanation 😔
It is updated now and thanks for letting us know