अब जब महर्षि ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी काल में ( न भूतकाल, न भविष्य और न ही वर्तमान) पदार्थ का नाश नहीं होता है बल्कि वह अपनी विशेषता के साथ अस्तित्व में बना रहता है तो शिष्यों के मन में जिज्ञासा उठी कि तब वे पदार्थ किस रूप में मौजूद रहते हैं? उनके अस्तित्व में बने रहने का स्वरूप कैसा होता है?
अब शिष्यों के इस जिज्ञासा के समाधान में यह यह सूत्र कहा जा रहा है।
महर्षि कहते हैं कि भूत, वर्तमान और भविष्य काल में विद्यमान रहने वाले सभी पदार्थ अपने गुण रूप में बने रहते हैं।
वर्तमान काल में तो वे पदार्थ अपने अभिव्यक्त रूप में रहते हैं जिसे यहां व्यक्त शब्द से कहा जा रहा है और भूत और भविष्य काल में अव्यक्त रूप में रहते हैं, जिसे यहां सूक्ष्म शब्द से महर्षि कह रहे हैं।
गुण शब्द से महर्षि यहां पर सत्व , रजस और तमस को कह रहे हैं। क्योंकि सभी पदार्थ प्रकृति का हो हिस्सा हैं, और यह प्रकृति त्रिगुणात्मक है। इन्हीं तीन गुणों से सारी प्रकृति के पदार्थों का निर्माण होता है इसलिए ये तीन गुण सभी पदार्थों में घुले मिले रहते हैं। इन्हीं तीन गुणों के कम अधिक अनुपात से पदार्थों में विभिन्न बदलाव या परिवर्तन होते रहते हैं।
इसलिए काल की अपेक्षा से पदार्थों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दो प्रकार से अभिव्यक्ति होती रहती है लेकिन वे नष्ट नहीं होते हैं अपितु तीन गुणों के रूप में अपने अस्तित्व को बनाएं रखते हैं।
यहां किसी एक पदार्थ के नष्ट होने या नहीं होने के बीच यह प्रश्न नहीं है अपितु प्रकृति में उस पदार्थ के अस्तित्व की बात हो रही है।
ऐसा यहां न समझ लिया जाए कि किसी एक पदार्थ को तो हम नष्ट कर देंगे फिर उसका अस्तित्व पुनः कैसे उभर कर आ जायेगा?
पहली बात तो यही है कि वह पदार्थ पूरी प्रकृति में अनेकों जगह होगा तो तात्विक रूप से वह पदार्थ तो बना ही हुआ है। यदि यह भी मान लिया जाय कि पूरी प्रकृति से किसी एक वस्तु या पदार्थ को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए तो क्या पुनः उस पदार्थ की उत्पत्ति संभव है? तब इस रूप में भी महर्षि कह रहे हैं कि सत्व रजस और तमस रूप ये तीन गुण तो बने ही रहते हैं और यही सभी पदार्थों की उत्पत्ति के मूल कारण हैं और जब तक ये कारण नष्ट या लीन नहीं होते तब तक किसी पदार्थ का विनाश संभव नहीं है। ये गुण पुनः उस पदार्थ को बनाने में पूर्णतः सक्षम हैं।