भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात् ॥ ३.२६॥
सूर्य में संयम करने से अर्थात धारणा ध्यान और समाधि का एक साथ प्रयोग करने से योगी को सभी लोग लोकान्तरों का ज्ञान हो जाता है | प्रस्तुत सूत्र में महर्षि ने सूर्य शब्द का प्रयोग किया है और यहां सूर्य से तात्पर्य यदि बाहरी सूर्य से लिया जाए तो उसे आंख बंद करके उसकी आकृति, स्वरूप पर संयम करने से योगी को 14 जो भुवन हैं उनका सम्यक ज्ञान हो जाता है |
कुल १४ भुवनों की बात हमारे शास्त्रों में आती है जिनमें ७ लोक पृथ्वी ७ लोक पृथ्वी से नीचे हैं, इस प्रकार 14 भुवनों का ठीक-ठाक ज्ञान योगी को हो जाता है |
वेदों में जैसे कहा गया है कि “सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च (यजुर्वेद 7/42)” सूर्य इस पूरे जगत की आत्मा है, तो जितने भी भुवन हैं या जितने भी लोक हैं उनका यदि कोई आत्मा है तो वह सूर्य है, और जब हम सूर्य के ऊपर अपनी धारणा-ध्यान और समाधि को एक साथ प्रयोग करते हैं तो महर्षि पतंजलि कहते हैं कि उस योगी को सभी लोक लोकान्तरों का सम्यक रूप से ज्ञान हो जाता है |