बन्धकारणशैथिल्यात्प्रचारसंवेदनाच्च चित्तस्य परशरीरावेशः ॥ ३.३८॥
हमारे चित्त हमारे विचारों और भावों का आश्रय स्थान है और चित्त का आधार हमारा यह शरीर है | इस सूत्र के माध्यम से महर्षि पतंजलि कह रहे हैं कि यदि योगी के सभी ऐसे कर्मों का प्रवाह रुक जाये जो बंधन का कारण बनती हैं तो योगी किसी मृत व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर सकता है |
इसे ही पर काया प्रवेश के नाम से कहा जाता है | ऐसे कर्म जो बंधन स्वरुप होते हैं और आगे चलकर जन्म रूपी फल देने वाले होते हैं यदि ऐसे कर्मों को योगी रोक लेता है या इन्हें चित्त से हटा देता है तब उसका चित्त एक खाली पात्र की तरह हो जाता है | | ऐसा खाली चित्त अब पूरी तरह से अन्य शरीर में जाकर प्रवेश कर सकता है |
इसके साथ ही महर्षि कह रहे हैं योगी को कर्मों एवं संस्कारों की गति का भी ज्ञान योगी को हो जाता है जिसके कारण से भी परकाया प्रवेश संभव हो पाता है |