Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.38 ||

बन्धकारणशैथिल्यात्प्रचारसंवेदनाच्च चित्तस्य परशरीरावेशः 


पदच्छेद: निबन्ध-कारण-शैथिल्यात, प्रचार-संवेदनात् , च, चित्तस्य, पर-शरीर-आवेश:॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • बन्ध -बन्धन
  • कारण -कारणों के
  • शैथिल्यात -स्थिलता से
  • प्रचार संवेदनात् -एवं मन के जाने-आने की गति का ज्ञान हो जाने से
  • चित्तस्य -मन का
  • पर -दूसरे के
  • शरीर -शरीर में
  • आवेश -प्रवेश हो जाता है

English

  • bandha - bondage
  • karana - cause
  • shaithilyat - loosing
  • prachara - passage
  • samvedanat - complete knowledge
  • cha - and
  • chittasya - of mind
  • para - another
  • sharira - body
  • aveshah - enter.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: कर्म के बन्धनों के शिथिल या रुकने से व मन के संस्कारों की गति का अच्छी प्रकार ज्ञान होने पर मन दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है । यह दुसरे के शरीर में प्परवेश करने की सिद्धि है जिसे पर शरीर गमन या परकाया प्रवेश भी कहते हैं | 

Sanskrit:

English: When the bonds of the mind caused by karma have been loosened, the yogi, by his knowledge of manifestation through the organs, enters another's body.

French: 

German: Wenn ( durch Samyama - die Versenkung) die Ursache unserer Befangenheit gelockert und die Bewegung des Citta ( des meinenden Selbst) verstanden worden ist, wird es möglich, in den Körper eines anderen einzudringen.

Audio

Yog Sutra 3.38

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

बन्धकारणशैथिल्यात्प्रचारसंवेदनाच्च चित्तस्य परशरीरावेशः ॥ ३.३८॥

हमारे चित्त हमारे विचारों और भावों का आश्रय स्थान है और चित्त का आधार हमारा यह शरीर है | इस सूत्र के माध्यम से महर्षि पतंजलि कह रहे हैं कि यदि योगी के सभी ऐसे कर्मों का प्रवाह रुक जाये जो बंधन का कारण बनती हैं तो योगी किसी मृत व्यक्ति के शरीर  में प्रवेश कर सकता है |

इसे ही पर काया प्रवेश के नाम से कहा जाता है | ऐसे कर्म जो बंधन स्वरुप होते हैं और आगे चलकर जन्म रूपी फल देने वाले होते हैं यदि ऐसे कर्मों को योगी रोक लेता है या इन्हें चित्त से हटा देता है तब उसका चित्त एक खाली पात्र की तरह हो जाता है | | ऐसा खाली चित्त अब पूरी तरह से अन्य शरीर में जाकर प्रवेश कर सकता है |

इसके साथ ही महर्षि कह रहे हैं योगी को कर्मों एवं संस्कारों की गति का भी ज्ञान योगी को हो जाता है जिसके कारण से भी परकाया प्रवेश संभव हो पाता है |

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