पूर्व के सूत्रों में जिस प्रकार चित्त के, निरोध के एवं एकाग्रता के परिणामों की चर्चा महर्षि ने की अब वे इस सूत्र के माध्यम से पांच महाभूत एवं इन्द्रियों के धर्म, लक्षण और अवस्था के विभाग के आधार पर उनके अलग अलग परिणाम के बारे में बता रहे हैं | यहाँ समझने वाली बात यह है कि इनके अलग अलग परिणाम को महर्षि कहते हैं कि स्वयं समझ लो|
अब प्रश्न उठता है कि किस प्रकार स्वयं से समझे तो महर्षि कहते हैं कि जैसे मैंने निरोध परिणाम,चित्त का परिणाम और एकाग्रता का परिणाम समझाया है उसी के आधार पर आपको समझ लेना चाहिए |
मेरी दृष्टि में, महर्षि की इस बात के दो अर्थ निकालने चाहिए |
एक, कि योग मार्ग पर यदि हम केवल निरोध,चित्त और एकाग्रता के परिणाम को समझकर अपने योग मार्ग पर आगे बढ़ जाएँ तो भी अच्छा है और जो भूत एवं इन्द्रियों के धर्म,लक्षण और अवस्था विषयक परिणाम हैं उन्हें भौतिक ज्ञान आधार पर अलग से समझ सकते हैं |
दूसरा, केवल समझ की दृष्टि से पूर्वोक्त वर्णन शैली के आधार पर आप स्वयं समझ लें क्योंकि इनकी व्याख्या से कुछ भी कुछ भी अवरुद्ध नहीं हो रहा है |
अब आईये समझते हैं कि पांच महाभूतों एवं इन्द्रियों का धर्म,लक्षण और अवस्था परिणाम क्या होता है | तो सबसे पहले हम यहाँ प्रयुक्त हुए तीन शब्दों का यथार्त अर्थ समझ लेते हैं | धर्म का यहाँ अर्थ है गुण से और लक्षण का यहाँ अर्थ है उसमें बदलाव से और अवस्था का यहाँ अर्थ है स्थिति से | यहाँ ये तीनों शब्द इन्हीं अर्थों में प्रयुक्त हुए हैं महर्षि कह रहे हैं कि पांच महाभूत हों या इन्द्रियां हों उनके गुणों के आधार पर, उनके लक्षणों के आधार पर एवं उनकी अलग अलग अवस्था के आधार पर परिणाम भी अलग अलग हो जाते हैं |
पांच महाभूत (पृथ्वी,जल, अग्नि, वायु और आकाश) के सबके अपने अपने अलग अलग गुण हैं जब इनमें कुछ बदलाव आता है तो इसे ही महाभूतों का धर्म परिणाम कहा गया है और ये सबके गुणों के आधार पर भौतिक परिवर्तन के रूप में तो अलग होगा लेकिन प्रक्रिया या होने का ढंग एक जैसा रहेगा | इसी प्रकार इन्द्रियों के गुणों में भौतिक परिवर्तन अलग दिखाई देगा लेकिन प्रक्रिया या होने का ढंग एक जैसा ही रहेगा |
इसी प्रकार महाभूतों एवं इन्द्रियों में लक्षण और अवस्था को लेकर भी समझ लेना चाहिए
सूत्र: एतेन भूतेन्द्रियेषु धर्मलक्षणावस्थापरिणामा व्याख्याताः
परिणामों की भी एक व्यवस्था है
उनका नाम धर्म, लक्षण और अवस्था है
कोई भी वस्तु इन तीन चरणों से गुजरती
इन चरणों से बनती, बिगड़ती और संवरती
पांच महाभूत और पांच इंद्रियां कही हैं
तीन परिणामों से होकर ये भी बही हैं
जैसे चित्त के परिणाम कहे हैं
वैसे ही इनके भी परिणाम कहे हैं
Kim Plofker, a noted expert of ancient mathematics in India recorded the Yoga sutra 3-13 stating ” Just as a line the hundreds place a hundred, in the tens a ten and one in open place, so one and the same woman is called mother, daughter, sister.
I do not find that. Can u clarify. Regards