Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.44 ||

स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमाद्भूतजयः 


पदच्छेद: स्थूल-स्वरुप-सूक्ष्म-अन्वय-अर्थवत्त्व-‌संयमाद्-भूतजय:॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • स्थूल -आकारवान या कोई ठोस पदार्थ
  • स्वरूप-उनके गुण या विशेषता
  • सूक्ष्म-स्थूल से भी सूक्ष्म
  • अन्वय-अति सूक्ष्म
  • अर्थवत्त्व -उद्देश्य या प्रयोजन
  • संयमाद्-संयम करने से
  • भूत-पंच महाभूतों पर
  • जय: -विजय प्राप्त हो जाती है

English

  • sthoola - gross
  • svaroopa - essential nature essence
  • sookshma -bsubtle
  • anvaya - connectedness
  • arthavattva - objectiveness
  • samyama - through samyama
  • bhoota - the elements
  • jayah - mastery.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश ये पांच महाभूत होते हैं । पञ्च महाभूतों की स्थूल, स्वरूप, सूक्ष्म, अन्वय और अर्थवत्त्व रूप से पांच विभाग हैं । इन सभी विभागों में एक साथ या क्रम से संयम करने पर योगी सभी पञ्च महाभूतों पर विजय प्राप्त कर लेता है ।

Sanskrit: 

English: By making samyama on the five forms of the elements (bhutas), which are gross form, essence, subtless, interconnectness and it's purpose, then mastery over those bhutas is attained.

French: 

German: Die Form eines Objektes, die Elemente, aus denen es besteht, die subtilen Quellen dieser Elemente, die Zusammensetzung der Elemente des Objektes und die Funktion dieses Objektes - Samyama ( Versenkung) in dieses Thema führt zur Meisterschaft über die Materie.

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Yog Sutra 3.44

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • German
  • Yog Kavya

स्थूलस्वरूपसूक्ष्मान्वयार्थवत्त्वसंयमाद्भूतजयः ॥ ३.४४॥

पूर्व के सूत्रों में महर्षि पतंजलि ने पञ्च महाभूतों की चर्चा की थी तो अब महर्षि बता रहे हैं कि योगी किस प्रकार महाभूतों के ऊपर विजय प्राप्त करता है | जैसा कि आप जानते हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पञ्च महाभूत हैं |

इन पञ्च महाभूतों की पांच प्रकार की स्तिथि होती है या अवस्थाएं होती हैं जिसे जिनका वर्णन महर्षि पतंजलि यहाँ कर रहे हैं-

१. स्थूल अवस्था

२.स्वरुप अवस्था

३. सूक्ष्म अवस्था

४. अन्वय अवस्था

५.  अर्थवत्त्व अवस्था

 

इस सूत्र के माध्यम से महर्षि यह भी बता रहे हैं कि प्रकृति जन्य या प्रकृतिमय कोई भी पदार्थ हो उसकी पांच अवस्थाएं होती हैं जैसा कि भूतों के सन्दर्भ में बताई गई हैं  |

भूतों की स्थूल अवस्था वह अवस्था है जब वे पूर्ण व्यक्त रूप से हमें हमारी आँखों से दिखाई देते हैं | जैसे हमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश दिखने में आते हैं उसे हम स्थूल अवस्था कहते हैं | जब योगी महाभूतों की इस अवस्था पर संयम  का अभ्यास करता है तो महाभूतों के ऊपर उसकी वशता होने लगती है  अर्थात वशता की प्रक्रिया शुरू हो जाती है |

पृथ्वी महाभूत की ठोस अवस्था, जल की तरल अवस्था, अग्नि की उष्ण अवस्था, वायु की गतिमान अवस्था और आकाश महाभूत के खालीपन की अवस्था को ही यहाँ स्वरुप अवस्था से कहा गया है |

सूक्ष्म अवस्था :  किसी भी पदार्थ, व्यक्ति की वह अवस्सूथा जिसमें उसका प्रत्यक्ष रूप न दिखाई दे लेकिन जिससे वह स्वरुप अवस्था बनी होती है उसे सूक्ष्म अवस्था कहा गया है | सूक्ष्म अवस्था तन्मात्राओं से बनी होती है | पृथ्वी की तन्मात्रा है गंध, जल की तन्मात्रा है रस, अग्नि की तन्मात्रा है रूप, वायु की तन्मात्रा है स्पर्श और आकाश की तन्मात्रा है शब्द | तन्मात्रा से बनी हुई अवस्था को ही सूक्ष्म अवस्था कहते हैं |

अन्वय अवस्था, वह अवस्था है जिसमें तन्मात्राओं से भी सूक्ष्मतर अवस्था आती है | तन्मात्राओं का आधार है त्रिगुण, सत्त्व, रजस और तमस | सत्त्व रजस और तमस को मूल प्रकृति भी कहा गया है |

किसी भी प्रकृति जन्य पदार्थ की अंतिम अवस्था होती है अर्थवत्त्व अवस्था | प्रकृति जब किसी तत्त्व या पदार्थ का निर्माण करती है तो उसकी एक उपयोगिता निश्चित करती है अर्थात यह पदार्थ बनाने के पीछे प्रक्रति का क्या मुख्य उद्देश्य है | सभी प्रकृति जन्य पदार्थों की दो मुख्य उपयोगिता है- एक है भोग उपलब्ध कराना और दूसरी है मुक्ति प्रदान करना | एक तरफ पदार्थ भोग की वस्तु बनते हैं तो स्वयं मुक्त भी करते हैं | यह एक विशेष व्यवस्था है पदार्थों की |

महर्षि कहते हैं जब महाभूतों की इस प्रकार की ५ अवस्थाओं पर योगी संयम करता है तो उसको भूतों (पृथ्वी भूत, जल भूत, अग्नि भूत, वायु भूत और आकाश भूत) के ऊपर विजय प्राप्त हो जाती है | विजय प्राप्त होने के बाद उसे किस प्रकार की शक्तियां मिलती हैं, इसका वर्णन महर्षि अगले सूत्र में करेंगे |

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2 thoughts on “3.44”

  1. Ganesh Devare says:

    i want in inglish

  2. Ganesh Devare says:

    pleas

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